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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश इंद्र के समान संपत्तिशाली राजा दिलीप ने प्रजा का आदर पाकर उस अयोध्या नगरी में प्रवेश किया। 389 उमावृषाङ्कौ शरणन्मना यथा यथा जयन्तेन शचीपुरंदरौ। 3/23 जैसे कार्तिकेय के समान पुत्र को पाकर शंकर और पार्वती को अत्यंत प्रसन्नता हुई थी, और जयंत जैसे पुत्र को पाकर इंद्र और शची प्रसन्न हुए थे। ततः प्रहस्यापभयः पुरंदरं पुनर्बभाषे तुरगस्य रक्षिता । 3 / 51 यह सुनकर अश्व के रक्षक रघु ने निडर होकर हँसते हुए इंद्र से कहा । शमितपक्षबल: शतकोटिना शिखरिणां कुलिशेन पुरंदरः । 9/12 जैसे इंद्र ने अपने सौ नोकों वाले वज्र से पर्वतों के पंख काट दिए थे । हरियुग्मं रथं तस्मै प्रणिधाय पुरंदरः । 12/84 इन्द्र ने अपना वह रथ भेजा, जिसमें पीले रंग के घोड़े जुते हुए थे । 14. पुरुहूत : - [ पृ पालनपोषणयो:-कु + हूतः ] इन्द्र का विशेषण । पुरुहूतध्वजस्येव तस्योन्नयनपङ्क्यः । 4 /3 वैसे ही प्रसन्न होते थे, जैसे आकाश में उठे हुए नये इन्द्र धनुष को देखकर लोग प्रसन्न होते थे । पुरुहूत प्रभृतयः सुरकार्योद्यतं सुराः । 10/49 जब भगवान् विष्णु देवताओं का कार्य करने के लिए चले, तब इन्द्र आदि देवताओं ने अपने-अपने अंश उनके साथ भेज दिए । सा साधुसाधारणपार्थिवर्द्धः स्थित्वा पुरस्तात्पुरुहूतभासः । 16/5 अपनी संपत्ति से सज्जनों का उपकार करने वाले, इंद्र के समान तेजस्वी राजा के आगे खड़ी हो गई । स पुरं पुरुहूतश्रीः कल्पद्रुमनिभध्वजाम्। 17/32 इन्द्र के समान ऐश्वर्यशाली राजा अतिथि घूमने निकले, तब कल्पवृक्ष के समान ध्वजाओं वाली अयोध्या नगरी । For Private And Personal Use Only 15. प्राचीनबर्हिष :- (पुं० ) [ प्राच् + रव + रव + बर्हिस्] इन्द्र का विशेषण । सयौ प्रथमं प्राचीं तुल्यः प्राचीनबर्हिषा । 4/28 इन्द्र के समान प्रतापी राजा रघु पहले दिग्विजय के लिए पूर्व की ओर चले । 16. बलनिषूदन :- [बल् + अच् + निषूदनः] इन्द्र के विशेषण । बलनिषूदनमर्थपतिं च तं श्रमनुदं मनुदण्डधरान्वयम् । 9 / 3
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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