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रघुवंश
विप्रलब्धा नायिका के समान दूती से विरह की बातें करने लगतीं, तब वह उन
बातों को छिपे-छिपे बड़े प्रेम से सुनता था। 5. वाच :-[वच् + क्विप् दीर्घोऽसंप्रसारणं च] वचन, शब्द, पदावली।
वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थ प्रति पत्तये। 1/1 वाणी और अर्थ को अपनाने के लिए और उनका ठीक व्यवहार करने के लिए। निशम्य देवानुचरस्य वाचं मनुष्यदेवः पुनरप्युवाच। 2/52 राजा ने एक ओर सिंह की बातें सुनीं फिर वे बोले। स्पशन्करेणानतपूर्वकायं संप्रस्थितो वाचमुवाच कौत्सः। 5/32 कौत्स बड़े प्रसन्न थे और उन्होंने चलते समय राजा के सिर पर हाथ धरते हुए कहा। वाचा :-[वाक् + आप्] भाषण, सूत्र, शपथ । कायेन वाचा मनसापि शश्वद्यत्संभृतं वासवधैर्यलोपि। 5/5 उन्होंने शरीर, मन और वचन तीनों प्रकार का जो कठिन तप करना प्रारंभ किया था और जिसे देखकर इन्द्र भी घबरा उठे थे। अन्वग्रहीत्प्रणमतः शुभदृष्टिपातैर्वार्तानुयोगमधुराक्षरया च वाचा। 13/71 राम ने प्रेम भरी आँखों से मधुर भाषा में उनसे कृपा पूर्वक कुशल-मंगल पूछा।
वज्र
1. आयुध :-[आ + युध् + घञ्] हथियार, ढाल, शस्त्र ।
असङ्गामद्रिष्वपि सारवत्तया न मे त्वदन्येन विसोढमायुधम्। 3/63 इन्द्र ने कहा :-हे राजकुमार! पर्वतों के पंख काटने वाले मेरे कठोर वज्र की चोट को, तुम्हें छोड़कर आज तक किसी ने नहीं सहा। सर्वैर्बलाङ्गैर्द्विरदप्रधानैः सर्वायुधैः कङ्कटभेदिभिश्च। 7/59 तब वे रथ, घोड़े, और पैदल लेकर कवच तक काट देने वाले पैने अस्त्रों से पूरा बल लगाकर। तन्मदीयमिदमायुधं ज्यया सङ्गमय सशरं विकृष्यताम्। 11/77
पहले तुम मेरे इस धनुष पर डोरी चढ़ाकर इसे बाण के साथ खींचों तो। 2. कुलिश :-[कुलि + शी + ड, पक्षे पृषो० दीर्घः] इन्द्र का वज्र, वज्र।
परामृशन्हर्ष जडेन पाणिना तदीयमङ्गं कुलिशव्रणाङ्कितम्। 3/68
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