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कालिदास पर्याय कोश 3. गिरा :-[गिर् + क्विप् + टाप्] वाणी, बोलना, भाषा, आवाज।
कान्त्या गिरा सूनृतया च योग्या त्वमेव कल्याणि तयोस्तृतीया। 6/29 इसलिए हे कल्याणी! तुम सुंदर भी हो और तुम्हारी मधुर वाणी भी है, इसलिए तुम दोनों के साथ तीसरी बनकर पहुँच सकती हो। चाप एव भवतो भविष्यति व्यक्तशक्तिरशंनिर्गिराविव। 11/41 पर कहने से होता क्या है, जैसे वज्र की शक्ति की परीक्षा पहाड़ पर होती है, वैसे
ही इनकी शक्ति की परीक्षा धनुष पर ही हो जाएगी। 4. वच :-[वच् + अच्] बोलना, बातें करना।
इति प्रगल्भं पुरुषाधिराजो मृगाधिराजस्य वचो निशम्य। 2/41 सिंह की ऐसी ढीठ बातें सुनकर जब राजा को यह विश्वास हो गया कि। संरुद्धचेष्टस्य मृगेन्द्र कामं हास्यं वचस्तद्यदहं विवक्षुः। 2/43 हे सिंह! हाथ के बँध जाने से मैं कुछ नहीं कर सकता, इसलिए जो कुछ मैं कहूँगा उसकी सब खिल्ली ही उड़ावेंगे। उत्तिष्ठ वत्सेत्य मृतायमानं वचो निशम्योत्थितमुत्थितः सन्। 2/61 इसी बीच अमृत के समान मीठे वचन सुनाई दिए :-'उठो बेटा'! राजा दिलीप ने सिर उठाया। उवाच धात्र्या प्रथमोदितं वचो ययौ तदीयामवलम्ब्य चाङ्गुलिम्। 3/25 तब धाय ने उन्हें जो कुछ सिखाया, उसे वे अपनी तोतली बोली में बोलने लगे,
और उसकी उँगली पकड़ कर चलने लगे। इति प्रगल्भं रघुणा समीरितं वचो निशम्याधिपतिर्दिवौकसाम्। 3/47 रघु के अभिमान भरे वचनों को सुनकर इन्द्र को बड़ा आश्चर्य हुआ। ललाटबद्ध श्रमवारि बिन्दु तां प्रियामेत्य वचो बभाषे। 7/66 उनके माथे पर पसीना आ गया और वे इंदुमती के पास आकर बोले। स तथेति विनेतुरुदारमतेः प्रतिगृह्य वचो विससर्ज मुनिम्। 8/91 विद्वान शिक्षक गुरु वशिष्ठ जी का उपदेश राजा ने स्वीकार किया और उनके शिष्य को इस प्रकार विदा दी। उचितवानिति वचः सलक्ष्मणं लक्ष्मणाग्रजमृषिस्तिरोदधे। 11/91 राम और लक्ष्मण से यह कहकर परशुराम जी अन्तर्धान हो गए। शुश्रुवे प्रियजनस्य कातरं विप्रलम्भपरि शंकिनो वचः। 19/18
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