________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
361
वक्ष
1. उर :-[ऋ + असुन्] छाती।
व्यूढोरस्को वृषस्कन्धः शालप्रांशुर्महाभुजः। 1/13 उनकी चौड़ी छाती, साँड़ के से ऊँचे और भारी कंधे, शाल के वृक्ष की सी लंबी
भुजाएँ। 2. वक्ष :-[वह + असुन्, सुट् च] छाती, हृदय, सीना।
युवा युगव्यायतबाहुरंसलः कपाटवक्षाः परिणद्धंक धरः। 3/34 युवावस्था के कारण रघु की भुजाएँ हल के जुए के समान दृढ़ और लंबी हो गईं, छाती चौड़ी हो गई और कंधे भारी हो गए। रघुर्भशं वक्षसि तेन ताडित: पपात भूमौ सह सैनिकाश्रुभिः। 3/61 छाती पर उस वज्र की मार से रघु पृथ्वी पर गिर पड़े, उनके गिरते ही उनके सैनिकों ने रोना पीटना आरंभ कर दिया। अवन्तिनाथोऽयमुदग्रबाहुर्विशाल वक्षास्तनुवृत्तमध्यः। 6/32 देखो, ये जो लंबी भुजा, चौड़ी छाती और पतली गोल कमर वाले राजा सूर्य के समान चमक रहे हैं, अवन्ति देश के राजा हैं। ततो बिभेद पौलस्त्यः शक्त्या वक्षसि लक्ष्मणम्। 12/77 तब मेघनाद ने खींचकर लक्ष्मण की छाती में शक्तिबाण मारा।
वच
1. गा :-[गै + डा] वाणी, शब्द, भाषा, वचन।
इत्यर्थ्यपात्रानुमित व्ययस्य रघोरुदारामपि गां निशम्य। 5/12 कौत्स ने ध्यान से रघु की उदार बातें सुनीं पर देखा, कि उनके हाथ में केवल मिट्टी का पात्र बचा है, इससे उनका मुँह उतर गया। 2. गिर :-[गृ + क्विप्] भाषण, शब्द, भाषा। अयमपि च गिरं नस्त्वत्प्रबोधप्रयुक्तामनुवदति शुकस्ते मञ्जुवाक्पञ्जरस्थः।
5/74 पिंजरे में बैठा हुआ मीठी बोली बोलने वाला तुम्हारा यह सुग्गा भी हमारी बातों को दुहरा रहा है।
For Private And Personal Use Only