________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
355
जैसे आदि वराह ने प्रलय से पृथ्वी को उबार लिया था, जैसे वर्षा बीतने पर शरद, बादलों से चाँदनी छीन लेता है।
पूर्वराज वियोगौष्मयं कृत्स्नस्य जगतो हृतम् । 17/33
सारे संसार के उस ताप को दूर कर दिया, जो कुश के वियोग से उत्पन्न हो गया
था ।
2. भुवन :- [ भवत्यत्र, भू- आधारादौ - क्युन् ] लोक, पृथ्वी, संसार । क्षतात्किल त्रायत इत्युदग्रः क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः । 2/53
हे सिंह ! संसार में क्षत्रिय शब्द का अर्थ ही यह है, कि दूसरों को नष्ट होने से बचावे |
गुर्वी धुरं यो भुवनस्य पित्रा धुर्येण दम्यः सदृशं बिभर्ति | 6/78
ये भी अपने प्रतापी पिता के समान ही राज्य का ( संसार का ) सब काम संभालते हैं ।
3. लोक :- [लोक्यतेऽसौ लोक् + घञ्] दुनिया, संसार ।
लोकान्तर सुखं पुण्यं तपोदान समुद्भवम् । 1/69
देव! तपस्या करने से और दान देने से जो पुण्य मिलता है, वह केवल परलोक में सुख देता है।
यतस्त्वया ज्ञानमशेषमाप्तं लोकेन चैतन्यमिवोष्णरश्मेः । 5/4
हे बुद्धिमान् ! जैसे सूर्य अपने प्रकाश से सोए हुए संसार को जगा देता है, वैसे ही जिस गुरु ने आपको ज्ञान की ज्योति देकर जगाया है।
सूर्ये तपत्यावरणाय दृष्टेः कल्पेत लोकस्य कथं तमिस्रा । 5/13
जैसे सूर्य के रहते हुए संसार में अँधेरा नहीं ठहर पाता (वैसे ही आपके राजा रहने पर प्रजा में दुःख नहीं है ।)
राजापि लेभे सुतमाक्षु तस्मादालोकमर्कादिव जीवलोकः । 5/35
जैसे सूर्य से संसार को प्रकाश मिलता है, वैसे ही ब्राह्मण के आशीर्वाद से थोड़े ही दिनों में रघु को पुत्र - रत्न प्राप्त हुआ ।
अथ स्तुते वन्दिभिरन्व यज्ञैः सोमार्कवंश्ये नरदेवलोके । 6/8
इतने में संसार के सब राजाओं का वंश जानने वाले भाटों ने सूर्य और चंद्र के वंश में उत्पन्न होने वाले उन सब राजाओं की प्रशंसा की ।
नासौ न काम्यो न च वेद सम्यग्द्रष्टुं न सा भिन्नरुचिर्हि लोकः । 6/30 यह बात नहीं थी कि वह राजा सुंदर न हो और न यही बात थी कि इंदुमती ने
For Private And Personal Use Only