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कालिदास पर्याय कोश
उसे ठीक से देखा न हो, पर अपनी रुचि ही तो है, संसार में किसी को कोई अच्छा लगता है, किसी को नहीं ।
काकुत्स्थमुद्दिश्य समत्सरोपि शशाप तेन क्षितिपाल लोकः । 7/3
यों तो संसार में जितने हारे हुए राजा थे, वे सभी अज से मन ही मन कुढ़ते थे, किंतु इंद्राणी के रहने से उनका भी क्रोध ठंडा पड़ गया ।
चतुर्वर्णमयोलोकस्त्वत्तः सर्वं चतुर्मुखात् । 10/22
आपके ही चारों मुखों से ज्ञान उत्पन्न हुआ है। चार वर्णों वाला यह संसार भी आपका ही बनाया हुआ है।
लोकानुग्रह एवैको हेतुस्ते जन्मकर्मणोः । 10/31
आप जो जन्म लेते हैं और कर्म करते हैं उसका एकमात्र उद्देश्य यही है, कि आप संसार पर अनुग्रह करना चाहते हैं।
लोकमन्धतमसात्क्रमोदितौ रश्मिभिः शशिदिवाकराविव । 11/24 जैसे सूर्य और चंद्रमा बारी-बारी से अपनी किरणों से संसार का अंधेरा दूर करते हैं ।
लौल्य
1. तृष्णा :- [ तृष् + न + टाप् किच्च ] इच्छा, लालच, लालसा, लोभ, लिप्सा । मामक्षमं मण्डनकालहानेर्बेत्तीव बिम्बाधरबद्धतृष्णम् | 13/16
मानो वह यह जान गया है कि मैं तुम्हारे लाल-लाल अधरों को चूमने ही वाला हूँ और अब अधिक शृंगार की बाट नहीं देखूँगा ।
2. लौल्य : - [लोलस्य भावः ष्यञ् ] उत्सुकता, उत्कण्ठा, लालच ।
नागेन लौल्यात्कुमुदेन नूनमुपातमन्तर्हदवासिना तत् । 16 / 76
जान पड़ता है कि इस जल में रहने वाले कुमुद नाम के नाग ने लोभ से उसे चुरा लिया है।
उपस्पृशन्स्पर्श निवृत्तलौल्यस्त्रि पृष्करेषु त्रिदशत्वमाप | 18/31 विषय वासनाओं से दूर रहकर ब्रह्मिष्ठ त्रिपुष्कर क्षेत्र में स्नान करके स्वर्ग चले
गए।
व
वंश
1. अन्वय : - [ अनु + इ + अच्] जाति, कुल, वंश, वंशज, संतति ।
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