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कालिदास पर्याय कोश
जिनमें पान की बेलों से ढके हुए सुपारी के पेड़ खड़े हैं, इलायची की बेलों से
लिपटे हुए चंदन के पेड़ लगे हैं। 3. वीरुध :-[विशेषेण रुणद्धि अन्यान् वृक्षान :-वि + रुध् + क्विप पक्षे टाप
उपसर्गस्य दीर्घः] लता, शाखा। अभिभूय विभूति मार्तवीं मधुगन्धाति शयेन वीरुधाम्। 8/36 उस स्वर्गीय माला में इतना अधिक मधु और इतनी अधिक गंध थी, कि उसके
आगे वसंत के वृक्षों और लताओं का मधु और सुवास लजा जाता था। 4. व्रतति :-लता, शाखा।।
अपश्यतां दाशरथी जनन्यौ छेदादिवोपजतरोतत्यौ। 14/1 राम की माताएँ उसी प्रकार उदास दिखती थीं, जैसे वृक्ष के कट जाने पर उसके सहारे चढ़ी हुई लताएँ मुरझा जाती हैं।
लोक 1. जगत् :-[गम् + क्विप् नि० द्वित्वं तुगागमः] संसार, लोक, पृथ्वी।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ। 1/1 मैं संसार के माता-पिता पार्वती जी और शिवजी को प्रणाम करता हूँ। एकातपत्रं जगतः प्रभुत्वं नवं वयः कान्तमिदं वपुश्च। 2/47 क्योंकि तुम एक साधारण सी गौ के पीछे इतना बड़ा राज्य (संसार), यौवन और ऐसा सुंदर शरीर छोड़ने पर उतारू हो गए हो। जगत्प्रकाशं तदशेषमिज्यया भवद् गुरुर्लयितुं ममोद्यतः। 3/48 मैंने सौ यज्ञ करने का संसार में जो यश पाया है, उसे तुम्हारे पिता मुझसे छीनना चाहते हैं। शमिताधिरधिज्यकार्मुकः कृतवानप्रतिशासनं जगत्। 8/27 तब उन्हें धीरज हुआ और उनका शोक कम हुआ, तब वे धनुष-बाण लेकर सारे संसार पर एक छत्र राज्य करने लगे। निर्दोषमभवत्सर्व माविष्कृत गुणं जगत्। 10/72 उस समय संसार से सारे दोष भाग गए और चारों ओर गुण ही गुण फैल गए। अन्यदा जगति राम इत्ययं शब्द उच्चरित एव मामगात्। 11/73 पहले संसार में राम कहने से लोग मुझे ही समझते थे। तत्रेश्वरेण जगतां प्रलयादिवोर्वी वर्षात्ययेन रुचमभ्रघनादिवेन्दोः। 13/77
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