________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
352
कालिदास पर्याय कोश अपनी प्रशंसा सुनकर शत्रुघ्न जी शील के मारे लजा गए। 3. ह्री :-[ही + क्विप्] लज्जा।
न मे ह्रिया शंसति किंचिदीप्सितं स्पृहावती वस्तुषु केषु मागधी। 3/5 सुदक्षिणा बड़ी लजीली है और अपनी इच्छा हमसे प्रकट नहीं करती है। पौलस्त्यतुलितस्यादेरादधान इव ह्रियम्। 4/80 कैलास पर्वत को बड़ी लज्जा हुई कि एक बार रावण ने मुझे क्या उठा लिया, कि सभी मुझे हारा हुआ समझने लगे। अलं ह्रिया मां प्रति यन्मूहूर्तं दयापरोऽभूः प्रहरन्नपि त्वम्। 5/58 जान पड़ता है कि आपने जो मुझ पर बाण चलाया है, उससे आपके मन में कुछ संकोच हो रहा है, पर इसमें लजाने की क्या बात है, क्योंकि आपके मन में मुझे मारने की इच्छा तो थी नहीं। ह्री यन्त्रणामानशिरे मनोज्ञा मन्योन्यलोलानि विलोचनानि। 7/23 एक दूसरे को देखकर लज्जा से आँखें नीची कर लेते थे, उनका यह लाज भरा संकोच देखने वालों को बड़ा सुंदर लग रहा था। हृष्टापि सा ह्रीविजिता न साक्षाद्वारग्भिः सखीनां प्रयमभ्यनन्दत्। 7/69 इन्दुमती प्रसन्न तो हुईं, पर वह इतनी लजा गई कि उनके मुँह से शब्द ही नहीं निकले और उसकी सखियों ने जो अज की प्रशंसा की, वह मानो इंदुमती ने ही उनका अभिवादन किया हो।
लता
1. लता :-[लत् + अच् + टाप्] बेल, फैलने वाला पौधा, शाखा।
लता प्रतानोदग्रथितैः स केशैरधिज्यधन्वा विचचार दावम्। 2/8 उनकी शिर की लटें, जंगल की लताओं के समान उलझ गई थीं, जब वे हाथ में धनुष लेकर जंगल में घूमते थे। अवाकिरन्बाललताः प्रसूनैराचारलाजैरिव पौरकन्याः। 2/10 लताएँ राजा दिलीप के ऊपर उसी प्रकार फूलों की वर्षा कर रही थीं, जिस प्रकार राजा के स्वागत में नगर की कन्याएँ राजा दिलीप के ऊपर धान की खीलें बरसाती हों। पुराण पत्रापगमदनन्तरं लतेव संनद्ध मनोज्ञपल्लवा। 3/7
For Private And Personal Use Only