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कालिदास पर्याय कोश राजा ने रात की वह अचरज भरी घटना प्रातः काल सभा में ब्राह्मणों से कही। रात्रिंदिवविभागेषु यदादिष्ट महीक्षिताम्। 17/49 शास्त्रों ने राजाओं के लिए दिन और रात के जो कर्तव्य निर्धारित किए हैं। आरुरोह कुमुदाकरोपमां रात्रिजागरपरो दिवाशयः। 19/34 अत: वह कुमुदों के समान रात भर जागता रहता और दिन भर सोता रहता। तस्य सर्वसुरतान्तर क्षमाः साक्षितां शिशिररात्रयो ययुः। 19/42 सब प्रकार की संभोग-क्रीडा करने योग्य हेमंत ऋतु की बड़ी-बड़ी रातों में
विहार करता था, जहाँ उसके साक्षी केवल दीपक थे। 8. वसति :-[वस् + अत वा ङीप्] रात, रात्रि।
तस्य मार्गवशादेका बभूव वसतिर्यतः। 15/11
मार्ग में जाते हुए उन्होंने पहली रात तो। 9. विभावरी :-[वि + भा + वनिप् + ङीप्, र आदेशः] रात
शरत्प्रसन्नोतिर्भिवि भावर्य इव ध्रुवम्। 17/35
जैसे शरद् ऋतु की निर्मल रातों के तारे ध्रुव के चारों ओर घूमते हैं। 10. शर्वरी :-[ + वनिप्, ङीप्, वनोर च] रात।
तनु प्रकाशेन विचेयतारका प्रभातकल्पा शशिनेव शर्वरी। 3/2 वे पौ फटते समय की उस रात जैसी लगने लगीं, जब थोड़े से तारे बचे रह जाते हैं और चंद्रमा भी पीला पड़ जाता है। शशिनं पुनरेति शर्वरी दयिता द्वन्द्वचरं पतत्त्रिणम्। 8/56 देखो चंद्रमा को रात्रि फिर मिल जाती है, चकवे को चकवी भी प्रातः ही मिल जाती है। अथ पथि गमयित्वा क्लृप्तरम्योपकार्ये कतिचिद्वनिपालः शर्वरीशर्वकल्पः।
11/93 तब शिव के समान राजा दशरथ ने कुछ रातें तो उस मार्ग में बिताईं, जहाँ उनके लिए सुन्दर डेरे तने हुए थे।
1. त्रिभुवनगुरु :-[त्रि + भुवनम् + गुरु] राम, विष्णु के विशेषण।
इत्थं नागस्त्रिभुवनगुरोरौरसं मैथिलेयं लब्ध्वा बन्धुं तमपि च कुश: पंचमं तक्षकस्य। 16/88
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