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रघुवंश
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पश्चिमाद्यामिनीयामात्प्रसादमिव चेतना । 17/1
जैसे रात के चौथे पहर बुद्धि को नयापन मिल जाता है। कार्तिकीषु सवितान हर्म्य भाग्यामिनीषु लललिताङ्गनासखः । 19/39 कार्तिक की रातों में वह राजभवन के ऊपर चंदोवा तनवा देता था और सुंदरियों के साथ उस चाँदनी का आनंद लेता था ।
6. रजनी : - [ रज्यतेऽत्र, रज् + कनि वा ङीप् ] रात ।
सदृशमिष्टसमागमनिर्वत्तिं वनितयानितया रजनीवधूः । 1/38
वैसे ही रात्रि रूपी नायिका भी वसंत के आने से छोटी होती चली गई और उसका चंद्रमा वाला मुख भी पीला पड़ता गया ।
7. रात्रि : - [ राति सुखं भयं वा रा + त्रिप् वा ङीप् ] रात ।
रात्रिर्गता मतिमतांवर मुञ्च शय्यां धात्रा द्विधैव ननु धूर्जगजो विभक्ता ।
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हे परम बुद्धिमान् ! रात ढल गई है, अब शैय्या छोड़िये ! ब्रह्मा ने पृथ्वी का भार केवल दो भागों में बाँटा है।
भावाबोध कलुषा दायितेव रात्रौ निद्रा चिरेण नयनाभिमुखी बभूव ।
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इसी उलझन में पड़े रहने के कारण रघु की आँखों में रात को उसी प्रकार विलंब से नींद आई, जैसे अपने पति के मन को न जानने वाली नई बहू अपने पति के पास विलंब से जाती है ।
नक्षत्रताराग्रह संकुलापि ज्योतिष्मीत चन्द्रमसैव रात्रिः । 6/22
जैसे तारों, ग्रहों और नक्षत्रों से भरी रहने पर भी रात तभी चाँदनी रात कहलाती है, जब चंद्रमा खिला हुआ हो ।
आयोधने कृष्ण गतिं सहायमवाप्य यः क्षत्रिय काल रात्रिम् । 6/42 ये राजा इतने बलवान हैं, कि अग्नि की सहायता पा लेने से ये क्षत्रियों की काली रात परशुराम के फरसे की तेज धार को ।
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संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीया य पतिंवरा सा । 6/67
रात को जब हम दीपक लेकर चलते हैं, तो मार्ग में पीछे अंधेरा पड़ता जाता है; वैसे ही जिन-जिन राजाओं को छोड़कर इन्दुमती आगे बढ़ गई उनके मुख । तदद्भुतं संसदि रात्रिवृत्तं प्रातर्द्विजेभ्यो नृपतिः शशंस । 16 / 24