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कालिदास पर्याय कोश अन्यत्प्रभुशक्ति संपदा वशमेको नृपतीननन्तरान्। 8/19 राजा अज ने अपने प्रभुत्व और शक्ति से आसपास के राजाओं को वश में कर लिया था। नृपतेरमरस्त्रगाप सा दयितोरुस्तन कोटिसुस्थितिम्। 8/36 वही माला अचानक राजा अज की रानी इन्दुमती के बड़े-बड़े स्तनों के ठीक बीच में आकर गिरी। नृपतेर्व्यजनादिभिस्तमो नुनुदे सा तु तथैव संस्थिता। 8/40 पंखा डुलाने और दूसरे उपायों से राजा अज की मूर्छा तो दूर हो गई, पर रानी इन्दुमती ज्यों की त्यों पड़ी रही। प्रमदामपु संस्थितः शुचा नृपतिः सन्निति वाच्यदर्शनात्। 8/72 अपनी पत्नी के वियोग में राजा अज इतने व्याकुल हो गए कि उन्हें जीने की साध जाती रही। रोगोप सृष्टतनु दुर्वसतिं मुमुक्षुः प्रायोपवेशनमतिर्नृपतिर्बभूव। 8/94 राजा अज अपने रोगी शरीर से छुटकारा पाने के लिए अनशन करने लगे। नृपतयः शतशो मरुतो यथा शतमखं तमखण्डितपौरुषम्। 9/13 जैसे देवता लोग इन्द्र के चरण छूते हैं, वैसे ही सैकड़ों राजाओं ने पराक्रमी राजा दशरथ के चरणों में अपने मुकुट वाले सिर रख दिए। नृपतिमन्यम सेवत देवता सकमला कमलाघवमर्थिषु। 9/16 दूसरा राजा ही कौन सा था, जिसके यहाँ हाथ में कमल धारण करने वाली लक्ष्मी स्वयं जाकर रहती। प्रायो विषाण परिमोक्षलघूत्तमाङ्गान्खगाँश्चकार नृपतिर्निशितैः क्षुरप्रैः। 9/62 इतने में उन्हें बारहसिंहों का झंड दिखाई दिया, राजा दशरथ ने अर्द्धचन्द्र बाणों से उनके सींग काटकर उनके सिर का बोझ हल्का कर दिया। नृपतीनिव तान्निवयोज्य सद्यः सितबालव्यजनैर्जगाम शान्तिम्। 9/66 इससे उन्हें ऐसा सन्तोष हुआ, मानो चँवर धारी राजाओं के चँवर ही उन्होंने छीन लिए हों। ताभ्यां तथागतमुपेत्य तमेकपुत्रमज्ञानतः स्वचरितं नृपतिः शशंस। 9/77 वहाँ पहुँच कर राजा दशरथ ने सब कथा बता दी, कि भूल से मैंने आपके एकलौते पुत्र पर किस प्रकार बाण चला दिया है।
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