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कालिदास पर्याय कोश
यों तो जितने हारे हुए राजा थे, वे सभी अज से मन ही मन कुढ़ते थे, किंतु इन्द्राणी के रहने से उनका भी क्रोध ठंडा पड़ गया ।
11. क्षितीश :- [क्षि + क्तिन् + ईश: ] राजा ।
आसमुद्रक्षितीशानामानाकथवर्त्मनाम् । 1/5
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जिन राजाओं का राज्य समुद्र के ओर-छोर तक फैला हुआ था, जिनके रथ पृथ्वी से सीधे स्वर्ग तक आया-जाया करते थे।
इत्थं क्षितीशेन वशिष्ठधेनुर्विज्ञापिता प्रीततरा बभूव | 2/67
राजा दिलीप की यह बात सुनकर तो नंदिनी बहुत ही प्रसन्न हुई । इति क्षितीशो नवतिं नवाधिकां महाक्रतूनां महनीयशासनः । 3/69 इस प्रकार राजा दिलीप की आज्ञा कोई टाल नहीं सकता था, उन्होंने निन्यानवें यज्ञों की सीढ़ी सी बना ली थी।
तमध्वरे विश्वजितं क्षितीशं निःशेषविश्राणित कोषजातम् । 5/1 जिस समय राजा रघु विश्वजित यज्ञ में सब कुछ दान किए बैठे थे। तस्याः प्रकामं प्रियदर्शनोऽपि न स क्षितीशो रुचये बभूव । 6/44 वैसे ही वह सुन्दर राजा भी इन्दुमती के मन में नहीं जँचा । इत्यचिवानुपहता भरण : क्षितीशं श्लाघ्यो भवान्स्वजन इत्यनुभाषितारम् ।
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यह कहकर कुमुद ने वह आभूषण राजा कुश को दे दिया, राजा कुश बोले :आज से आप मेरे आदरणीय संबंधी हुए ।
12. क्षितीश्वर : - [क्षि + क्तिन् + ईश्वरः ] राजा ।
, उसे एकांत
तदाननं मृत्सुरभि क्षितीश्वरो रहस्युपाघ्राय न तृप्तिमाययौ । 3 / 3 वैसे ही मिट्टी खाने से रानी सुदक्षिणा का जो मुँह सोंधा हो गया था, - सूँघकर भी राजा दिलीप अघाते नहीं थे । कौशिकेन स किल क्षितीश्वरो राममध्वरविघातशान्तये ! | 11/1 एक दिन विश्वामित्र जी राजा दशरथ के पास आए और उन्होंने कहा कि मेरे यज्ञ की रक्षा के लिए काकपक्ष-धारी राम को हमारे साथ भेज दीजिए । अन्वयुङ्ग गुरुमीश्वरः क्षितेः स्वन्तमित्यलघयत्स तद्व्यथाम् । 11/62 इस पर गुरुजी ने कहा :- चिंता की कोई बात नहीं है, इसका फल अच्छा ही होगा। यह सुनकर राजा दशरथ के मन में कुछ ढाढ़स बँधा।
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