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रघुवंश
311 तब शिव के समान राजा दशरथ ने कुछ रातें तो उस मार्ग में बिताईं, जहाँ उनके
लिए सुन्दर डेरे तने हुए थे। 7. ईश्वर :-राजा, राजकुमार।
रघुमेव निवृत्तयौवनं तममन्यन्त नवेश्वरं प्रजाः। 8/5 वहाँ भी प्रजा ने भी अज के राजा होने पर यही समझा, मानो रघु ही फिर से युवा हो गए हों। विप्रोषितकुमारं तद्राज्य मस्तमितेश्वरम्। 12/11 अयोध्या के राजा स्वर्ग चले गए और राजकुमार भी राज्य छोड़कर चल दिए, तो
उन्होंने झट अयोध्या पर धावा बोल दिया। 8. क्षितिप :-[क्षि + क्तिन् + प:] राजा।
कुशलविरचितानुकूलवेषः क्षितिप समाजमगात्स्वयंवरस्थम्। 5/76 उनके चतुर सेवकों ने उन्हें बहुत सुंदर वस्त्र पहनाए, इस प्रकार सज-धजकर वे स्वयंवर के राज-समाज की ओर चल दिए। शल्यप्रोतं प्रेक्ष्य सकुम्भं मुनिपुत्रं तापादन्तः शल्य इवासीक्षितिपोऽपि।
9/75 राजा दशरथ ने देखा कि नरकट की झाड़ियों में बाण से बिंधा हुआ, घड़े पर झुका हुआ किसी मुनि का पुत्र पड़ा है, उसे देखकर उन्हें लगा, मानो उन्हें भी
बाण लगा हो। 9. क्षितिपति :-[क्षि + क्तिन् + पति:] राजा।
प्रमुदित वर पक्षमेकतस्तत्क्षितिपतिमण्डलमन्यतो वितानम्। 6/86 स्वयंवर के मंडप में एक ओर अज के साथी हँसते हुए खड़े थे, और दूसरी ओर उदास मुँह वाले राजा लोग। ननु शब्दपतिः क्षितिरहं त्वयि मे भावनिबन्धना रतिः। 8/52
मैं पृथ्वी का पति तो नाम भर का हूँ, मेरा सच्चा प्रेम तो केवल तुम से है। 10. क्षितिपाल :-[क्षि + क्तिन् + पाल:] राजा। शिलोच्चयोऽपि क्षितिपालमुच्चैः प्रीत्या तमेवार्थमभषतेव। 2/51 जब राजा दिलीप से इतना कहकर सिंह चुप हो गया, पर्वत ने भी प्रसन्न होकर सिंह की ही बातों का समर्थन किया। काकुत्स्थमुद्दिश्य समत्सरोऽपि शशाम तेन क्षितिपाल लोकः। 7/3
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