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रघुवंश
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पार्थिव श्रीर्द्वितीयेव शरत्पङ्कजलक्षणा । 4/14
उस समय दूसरी राजलक्ष्मी के समान शरदऋतु आ गई थी, जिसमें चारों ओर कमल खिल गए थे ।
4. राजलक्ष्मी : - [राज् + क्विप् + लक्ष्मी / राज् + कनिन्, रञ्जयति रञ्जु + कनिन् नि०वा० + लक्ष्मी] राजा का सौभाग्य या समृद्धि, राजा की कीर्ति या महिमा । सन्यस्तचिह्नामपि राजलक्ष्मीं तेजोविशेषानुमितां दधानः । 2/7
उन्होंने गौ की सेवा के व्रत के कारण यद्यपि राजचिह्नों को छोड़ दिया था फिर भी उनके शरीर और मुख के तेज को देखकर कोई भी कह सकता था कि ये सम्राट ही हैं।
5. राज्यश्री : - [ राजन + यत्, न लोपः + श्रीः] राजा का सौभाग्य या समृद्धि, राजा की कीर्ति या महिमा ।
आसीदति शयप्रेक्ष्यः स राज्यश्री वधूवरः । 17/25
राजा अतिथि उस समय ऐसे सुन्दर दिखाई देते थे, मानो राजलक्ष्मी रूपी बहू के दूल्हे हों।
6. वंशश्री : - [ वमति उद्गिरति वम् + श तस्य नेत्वम् + श्री] राजलक्ष्मी । तस्यानलौजास्तनयस्तदन्ते वंशश्रियं प्राप नलाभिधानः । 18 /5 उनके पीछे उनके अग्नि के समान तेजस्वी पुत्र नल राजा हुए।
7. सुरश्री : - [ सुष्ठुराति ददात्यभीष्टम् :- सु + रा क + श्री] देवताओं की राजलक्ष्मी ।
चुकोप तस्मै स भृशं सुरश्रियः प्रसह्य केशव्यपरोपणादिव । 3/56
उससे इन्द्र को ऐसा क्रोध हुआ, मानो किसी ने बलपूर्वक देवताओं की राजलक्ष्मी के सिर के बाल काट लिए हों ।
राजा
1. अधिप :- [ अधि + पा + क] शासक, राजा, प्रधान ।
अथ प्रजानामधिपः प्रभाते जायाप्रतिग्राहितगन्धमाल्याम्। 2/1
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दूसरे दिन प्रात:काल राजा दिलीप की पत्नी सुदक्षिणा ने पहले फूल, माला-चन्दन लेकर ।
विलपन्निति कोशलाधिपः करुणार्थ ग्रथितं प्रियां प्रति । 8/70
जब कोशल नरेश अज अपनी प्रिया के लिए इस प्रकार शोक कर रहे थे ।