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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 308 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश रथी निषङ्गी कवची धनुष्मान्दृप्तः स राजन्यकमेकवीरः । 7/56 वैसे ही घोड़े पर चढ़े, तूणीर बाँधे स्वाभिमानी वीर अज अकेले ही शत्रुओं की सेना को चीरते चले जा रहे थे । 2. रथेश :- [ रम्यतेऽनेन अत्र वा :-रम् + कथन् + ईश : ] रथ में बैठकर युद्ध करने वाला योद्धा । पत्तिः पदातिं रथिनं रथेशस्तुरंग सादी तुरगाधि रूढम् | 7/37 पैदल-पैदलों से भिड़ गए, रथवाले - रथवालों से जूझ गए, घुड़सवार घुड़सवारों उलझ पड़े। राजगण 1. राजगण : - [राज् + क्विप् + गणः] राजाओं का समूह, राजाओं का कुल । तमुद्वहन्तं पथि भोजकन्यां रुरोध राजन्यगणः स दृप्तः । 7/35 जब अज इन्दुमती को साथ लिए चले जा रहे थे, उस समय उन अभिमानी राजाओं ने अज को उसी प्रकार रोक लिया । 2. राजलोक : - [राज् + क्विप् + लोकः ] राजाओं का समूह। स राजलोकः कृतपूर्व संविदा रम्भसिद्धौ समयोपलभ्यम् । 7/31 इन राजाओं ने मिलकर पहले ही निश्चय कर लिया था कि जब अज इन्दुमती को लेकर चलें, तो उन्हें घेर लिया जाय । राजलक्ष्मी 1. नराधिपश्री : - [ नृ + अच् + अधिप + श्री : ] राजा का यश या कीर्ति, राजा का सौभाग्य या समृद्धि । साधु दृष्टशुभ गर्भलक्षणा प्रत्यपद्यत नराधिपश्रियम्। 19 / 55 राजा की उस पटरानी को सिंहासन पर बैठा दिया, जिसमें गर्भ के शुभचिह्न दिखाई दे रहे थे । For Private And Personal Use Only 2. पार्थिवर्द्धि : - राजा का यश या कीर्ति, राजलक्ष्मी । स साधु साधारणपार्थिवर्द्धेः स्थित्वा पुरस्तात्पुरुहूत भासः । 16/5 अपनी संपत्ति से सज्जनों का उपकार करने वाले, इन्द्र के समान तेजस्वी कुश के आगे वह स्त्री । 3. पार्थिव श्री : - [ पृथिवी + अण् + श्री: ] राजा का सौभाग्य या समृद्धि ।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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