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रघुवंश
पुनः पुनः सूतनिषिद्धचापलं हरन्तमश्वं रथरश्मिसंयतम् । 3/42
वह घोड़ा भी उनके रथ के पीछे बंधा हुआ, तुड़ाकर भागने का यत्न कर रहा है, जिसे इन्द्र का सारथी बार-बार सँभालने का यत्न कर रहा है। निवर्तयामास रथं सविस्मयः प्रचक्रमे च प्रतिवक्तुमुत्तरम् । 3/47
इन्द्र को बड़ा आश्चर्य हुआ और अपना रथ घुमाकर वे बोले ।
art पश्चाद्रादीति चतुः स्कन्धेव सा चमूः । 4 / 30
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सबसे पीछे रथ आदि की सेना चली आ रही थी । रघु की सेना मानो इस प्रकार चार भागों में बँटी हुई चल रही थी ।
रथवर्त्मरजोऽप्यस्य कुत एव पताकिनीम् । 4/82
जब वह रथों के पहियों से उठी हुई धूल से ही घबरा गया, तो फिर सेना से लड़ता ही क्या।
इति जित्वा दिशो जिष्णुर्व्यवर्तत रथोद्धतम् । 4 / 85
इस प्रकार विजयी रघु सारी पृथ्वी को जीतकर अपनी राजधानी अयोध्या को लौटे, तो उनके रथ के पहियों से उठी हुई ।
अथाधिशिश्ये प्रयतः प्रदोषे रथं रघुः कल्पित शस्त्रगर्भम् । 5 / 28
रघु ने सोचा कि उसी रथ पर चढ़कर मैं अकेला ही जीत लूँगा। यह निश्चय करके वे सांझ होते ही अस्त्र-शस्त्र ठीक करके रथ में ही जाकर सो रहे । सच्छिन्नबन्ध द्रतुयुग्मशून्यं भगनाक्षपर्यस्त रथं क्षणेन । 5/49
उस विशाल जंगली हाथी को देखते ही सब घोड़े भी रस्सा तुड़ा- तुड़ाकर भाग चले, इस भगदड़ में जिन रथों के धुरे टूट गए, वे जहाँ-तहाँ गिर पड़े थे । रथो रथाङ्गध्वनिना विजज्ञे विलोल घण्टा क्वणितेन नागः । 7/41 उस युद्ध क्षेत्र में पहियों का शब्द सुनकर ही वे समझ पाते थे कि रथ आ रहा है और अपना पराया तब समझते थे जब ।
प्रहारमूर्च्छापगमे रथस्था यन्तृनुपालभ्यनिवर्तिताश्वान् 7/44
जो योद्धा चोट लगने से मूर्छित हो गए थे, उनको उनके सारथी रथ पर डालकर लौट आए।
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सोऽस्वजैश्छन्नरथः परेषां ध्वजाग्रमात्रेण बभूव लक्ष्यः । 7/60
इन राजाओं ने अज पर इतने अस्त्र बरसाए कि उनका रथ ढक गया, अज का पता उनके रथ की पताका के सिरे को देखकर ही मिलता था ।