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कालिदास पर्याय कोश
उत्थापितः संयति रेणुरश्वैः सान्द्रीकृतः स्यन्दनवंश चक्रैः। 7/39 युद्ध-क्षेत्र में घोड़ों की टापों से जो धूल उठी, उसमें रथ के पहियों से उठी हुई धूल मिलकर और भी घनी हो गई। सच्छिन्नमूलः क्षतजेन रेणुस्तस्योपरिष्टात्पवनावधूतः। 7/43 पृथ्वी पर इतना रक्त बहा कि नीचे की धूल दब गई और जो धूल उठ चुकी थी, वह वायु के सहारे इधर-उधर फैलकर। गगनमश्वखुरोद्धतरेणुभिसविता स वितानमिवाकरोत्। 9/50 तब उनके घोड़ों की टापों से इतनी धूल उठी कि आकाश में चंदोवा सा तन गया। रेणुः प्रपेदे पथि पङ्कभावं पङ्कोऽपि रेणुत्वमियाय नेतुः। 16/30 मार्ग की धूल कीचड़ बन गई और कीचड़ भी धूल बन गया।
रथ
1. रथ :-[रम्यतेऽनेन अत्र वा :-रम् + कथन्] यान, वाहन, युद्धरथ।
आसमुद्रक्षिती शानामानाकरथवर्त्मनाम्। 1/5 जिनका राज्य समुद्र के ओर-छोर तक फैला हुआ था, जिनके रथ पृथ्वी से सीधे स्वर्ग तक आया-जाया करते थे। मनोभिरामाः शृण्वन्तौ रथनेमिस्वनोन्मुखैः। 1/39 कहीं तो रथ की गड़गड़ाहठ सुनकर बहुत से मोर अपना मुँह ऊपर उठाकर दुहरे मनोहर। तामवारोहयत्पत्नी रथादवततार च। 1/54 पहले तो उन्होंने अपनी पत्नी को रथ से उतारा और फिर स्वयं भी रथ से उतर पड़े। श्रोत्राभिराम ध्वनिना रथेन स धर्मपत्नी सहितः सहिष्णुः। 2/72 सहनशील राजा दिलीप अपनी पत्नी के साथ जिस रथ पर चढ़कर अयोध्या को चले, उसकी ध्वनि कानों को बड़ी मीठी लग रही थी। दिवं मरुलानिव भोक्ष्यते भुवं दिगन्तविश्रान्तरथो हि तत्सुतः। 3/4 भविष्य में उसका पुत्र भी संपूर्ण पृथ्वी पर उसी प्रकार राज करे, जैसे इन्द्र स्वर्ग पर राज करते हैं।
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