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रघुवंश
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मृगैर्वर्तितरो मन्थमुटजांगन भूमिषु । 1 / 52
वहीं आँगन में बहुत से हरिण बैठकर जुगाली कर रहे थे ।
art मृगाध्यासित शाद्वलानि श्यामायमानानि वनानि पश्यन् । 2/17 कहीं हरिण हरी घासों पर थककर बैठ गए हैं और धीरे-धीरे साँझ होने से वन की सब धरती धुंधली पड़ती जा रही है।
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दृशदो वासितोत्संगा निषण्ण मृगनाभिभि: । 4/74
उन पथरीली पाटियों पर बैठ गए, जिनमें से कस्तूरी मृगों के बैठने से सुगंध आ रही थी ।
समलक्ष्यत बिभ्रदाविलां मृगलेखामुषसीव चन्द्रमाः । 8/42
उस प्रातः काल के चन्द्रमा के समान दिखाई दे रहे थे, जिसकी गोद में धुंधली मृग की छाया हो ।
स्थिर तुरंगमभूमि निपानवन्मृगवयोगवयोगवयोपचितं वनम् । 9 / 53 a की पृथ्वी घोड़ों के लिए पक्की थी, वहाँ बहुत से ताल थे, जिनके चारों ओर बहुत से हरिण, पक्षी और बनैली गाएँ घूमा करती थीं। आविर्बभूव कुशगर्भ मुखं मृगाणां यूथं तदग्रसरगर्वितकृष्ण सारम् । 9/55 जो कुशा चबा-चबाते अपनी माँ के स्तनों से दूध पीने के लिए बीच-बीच में खड़े हो जाते थे । इस हिरणों के झुंड के आगे एक गर्वीला काला हरिण भी चला जा रहा था।
बद्ध पल्लवपुटांजलिदुमं दर्शनोन्मुखमृगं तपोवनम् । 11/23
जहाँ वृक्ष भी अपने पत्तों की अंजलि बाँधे खड़े थे और जहाँ मृग भी बड़ी उत्सुकता से इन्हें देख रहे थे ।
विदुत क्रतु मृगानुसारिणं येन बाणमसृजद्वृषध्वजः । 11/44
जिसे हाथ में लेकर शंकरजी ने मृग के रूप में दौड़ने वाले यज्ञ देवता के ऊपर बाण छोड़े थे ।
अजिनदण्डभृतं कुशमेखलां यतगिरं मृगशृंग परिग्रहाम् । 9 / 21
जब वे मृगछाला पहन कर हाथ में दंड लेकर, कुशा की तगड़ी बाँधकर चुपचाप हरिण की सींग लिए ।
रक्षसा मृगरूपेण वंचयित्वा स राघवौ । 12 / 53
तब उसने मारीच को मृग बनाया और रामलक्ष्मण को धोखा देकर ।
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