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कालिदास पर्याय कोश पुरा स दर्भाकुर मात्रवृत्तिश्चरन्मृगैः सार्धमृषिर्मघोना। 13/39 पहले ये महर्षि तपस्या करते समय मृगों के साथ घास चरा करते थे, तब इन्द्र ने डरकर इनका तप डिगाने के लिए। सायं मृगाध्यासित वेदिपार्श्व स्वमाश्रमं शान्तमृगं निनाय। 14/79 साँझ हो जाने के कारण बहुत से मृग आश्रम में वेदी को घेरकर बैठे हुए थे और अन्य जन्तु भी चुपचाप आँख मूंदे पड़े थे। मृगैरजर्यं जरसोपदिष्टमदेहबन्धाय पुनर्बबन्ध। 18/7 स्वयं बुढ़ापे के कारण जंगलों में जाकर मृगों के साथ इसलिए रहने लगे कि फिर
संसार में जन्म न लेना पड़े। 2. सारंग :-[स + अङ्गच् + अण्] हरिण।
आशंकयोत्सुक सारंगां चित्रकूटस्थली जहौ। 12/24 राम ने चित्रकूट का वह आश्रम छोड़ दिया, जहाँ के हरिण उनसे इतने हिलमिल
गए थे कि दिन-रात उन्हें ही देखते रहते थे। 3. हरिण :-[ह + इनन्] मृग, बारहसिंगा।
लक्ष्मीकृतस्य हरिणस्य हरिप्रभावः प्रेक्ष्य स्थितां सहचरीं व्यवधाय देहम्। 9/57 राजा दशरथ ने देखा कि जिस हरिण को मारना चाहते थे, उसकी हरिणी बीच में आकर खड़ी हो गई। सकृतिविग्नानपि हि प्रयुक्तं माधुर्यभीष्टे हरिणान् ग्रहीतुम्। 18/13 क्योंकि मधुर वचन में ऐसा प्रभाव होता है कि एक बार डराए हुए हरिण भी वश में हो जाते हैं।
मृगी 1. कुररी :-[कुरर + ङीष्] मृगी, हिरणी।
सा मुक्त कंठं व्यसनाति भाराच्चक्रन्द विग्ना कुररीव भूयः। 14/68
सीता जी डरी हुई कुररी (मृगी) के समान डाढ़ मारकर रोने लगीं। 2. मृगी :-[मृग + ङीष्] हरिणी, मृगी।
तदंकशय्याच्युत नाभि नाला कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूतिः। 5/7 हरिणियों के वे छोटे-छोटे बच्चे तो कुशल से हैं न, जिनकी नाभि का नाल ऋषियों की गोद में ही सूखकर गिरता है।
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