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कालिदास पर्याय कोश
ज्याबन्ध निष्पन्दभुजेन यस्य विनिः श्वसद्वक्त्र परम्परेण। 6/40 उसकी भुजाएँ इस प्रकार धनुष की डोरी से कसकर बाँध दी थीं कि वह बेचारा दिनरात मुँह से साँसे भरता रहता था। शिक्षाविशेष लघुहस्ततया निमेषात्तूणीचकार शरपूरित वक्त्ररन्ध्रान्।9/63 राजा दशरथ ने इतनी शीघ्रता से उन पर बाण चलाए कि उन सिंहों के खुले मुँह. उनके बाणों के तूणीर बन गए। अस्याच्छम्भः प्रलयवृद्धं मुहूर्त वक्त्राभरणं बभूव। 13/8 उस समय प्रलय से बढ़ा हुआ इसका जल क्षण भर के लिए मुँह का आभूषण चूंघट बन गया था। यो नड्वलानीव गजः परेषां बलान्य मृदानलिना भवक्त्रः। 18/5 उस कमल के समान सुंदर मुख वाले राजा ने शत्रुओं के बल को वैसे ही तोड़
डाला, जैसे हाथी नरकटके गढ़े को तोड़ डालता है। 4. वदन :-[वद् + ल्युट्] चेहरा, मुख।
सुवदनावदनासवसंभृतस्तदनुवादिगुणः कुसुमोद्गमः। 9/30 सुन्दरी स्त्रियों के मुख की मदिरा के कुल्ले से फूल उठे थे और जिनमें उन्हीं स्त्रियों के गुण भी भरे थे। एताः करोत्पीडितवारिधारा दत्सिखीभिर्वदनेषु सिक्ताः। 16/66 जब इनकी सखियाँ इनके मुँह पर पानी डालती हैं और ये अहंकार से उन पर पानी उछालती हैं। प्रेमदत्तवदनानिलः पिबन्नत्यजीवदमरालकेश्वरो। 19/15 तब राजा प्रेमपूर्वक फूंक मार-मारकर उनके मुख चूमने लगता था व अपने को इन्द्र और कुबेर से बढ़कर सुखी और भाग्यवान समझता था।
मृग 1. मृग :-[मृग् + क] हरिण, बारहसिंगा।
मृगद्वन्द्वेषु पश्यन्तौ स्यन्दनाबद्ध दृष्टिषु। 1/40 हरिणों के जोड़े उनकी ओर एकटक देख रहे हैं। अपत्यैरिव नीवारभागधेयो चितैर्मृगैः। 1/50 बहत से मग खड़े थे, उन्हें भी तिन्नी के दाने खाने का अभ्यास ऋषियों के बच्चों के समान ही पड़ गया था।
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