________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
277
ध्वजपटं मदनस्य धनुर्भुतश्छविकरं मुखचूर्णं मृतु श्रियः। 9745 मानो धनुषधारी कामदेव का झंडा हो या वसंतश्री के मुख पर लगाने का श्रृंगार चूर्ण हो। चतुर्वर्णमयो लोकस्त्वतः सर्वं चतुर्मुखात्। 10/22 चार वर्णों वाला यह संसार भी चतुर्मुख का (आपका) ही बनाया हुआ है। ददृशुर्विस्मितास्तस्य मुखरागं समं जनाः। 12/8 यह देखकर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि राम के मुँह का भाव दोनों ही स्थितियों में एक समान था। मुखार्पणेषु प्रकृति प्रगल्भाः स्वयं तरंगाधरदानदक्षः। 13/9 जब नदियाँ ढीठ होकर चुंबन के लिए अपना मुख इसके सामने बढ़ाती हैं, तब यह समुद्र बड़ी चतुराई से अपना तरंग रूपी अधर उन्हें पिलाता है। आकाशवायुर्दिन यौवनोत्थानाचमिति स्वेदल वान्मुखे ते। 13/20 आकाशगंगा की लहरों से ठंडाया हुआ आकाश का वायु तुम्हारे मुख पर छाई हुई पसीने की बूंदों को पीता चलता है। सा दुर्निमत्तापगता द्विषादात्सद्यः परिम्लान मुखार विन्दा। 14/50 यह असगुन होते ही उनका मुँह उदास हो गया और वह मन ही मन मनाने लगी की उन पर कोई आँच न आए। ददर्श कंचिदैक्ष्वाकस्तपस्यन्तमधो मुखम्। 15/49 राम देखते क्या हैं कि एक मनुष्य नीचे मुँह किए हुए तप कर रहा है। तेनैव शून्यान्यरिसुन्दरीणां मुखानि स स्मेरमुखश्चकार। 18/44 उन्होंने शत्रुओं की स्त्रियों के मुख पर का तिलक और उनकी मुख की मुस्कराहट
दोनों छीन ली। 3. वक्त्र :-[वक्ति अनेन वच् :-करणे ष्ट्रन्] मुख, चेहरा।
वक्त्रोष्मणा मलिनयन्ति पुरोगतानि। 5/73 घोड़े अपने सामने रखे हुए नमक के टुकड़ों को अपने मुँह की भाप से मैला कर रहे हैं। प्रालम्बुत्कृष्य यथावकाशं निनाय साचीकृत चारुवक्त्रः। 6/14 थोड़ा मुँह घुमाकर कंधे से सरकी हुई और भुजबंध में उलझी हुई माला को
उठाकर।
For Private And Personal Use Only