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कालिदास पर्याय कोश
प्रसादसुमुखे तस्मिंश्चन्द्र च विशप्रभे । 4/18
रघु के खिले हुए मुख और उजले चन्द्रमा दोनों को देखकर दर्शकों को । यवनीमुखपद्मानां सेहे मधुमदं न सः । 4/61
मदिरा से लाल गालों वाली यवनियों के मुख कमल मुरझा गए।
तासां मुखैरासवगन्धगर्भैर्व्याप्तान्तराः सान्द्रकुतूहलानाम्। 7/11
मदिरा की गन्ध से सुवासित मुखों वाली, उत्सुकता से झाँकती हुई वे स्त्रियाँ ऐसी पड़ती थीं ।
वधू मुखं पाटलंगद्रलेख माचार धूम ग्रहणाद्बभूव । 7 / 27 विवाह की अग्नि का धुआँ इन्दुमती के मुँह
गए।
तस्याः प्रतिद्वन्द्विभवाद्विषात्सद्यो विमुक्तं मुखमाबभासे । 7/68 जब इन्दुमती को विश्वास हो गया कि शत्रु मारे गए, तब उसका मुँह सुन्दर लगने
लगा।
लगने से उनके गाल लाल हो
सुरतश्रमसंभृतो मुखे ध्रियते स्वेदलपोद्गमोऽपि ते । 8 /51
अभी तुम्हारे मुँह पर से संभोग की थकावट के पसीने की बूंदे भी नहीं सूखीं । इदमुच्छ्वसिततालकं मुखं तव विश्रान्तकथं दुनोति माम् । 8 /55 तुम्हारा बिखरी अलकों से ढका मौन मुँह देखकर मेरा हृदय फटा जा रहा है। मत्स्यध्वजा वायुवशाद्विदीर्णैमुखैः पर्याविलानीव नवोदकानि । 7/40 वायु के कारण सेना की मछली के आकार वाली झंडियों के मुँह खुल गए थे, वे गंदा पानी पीती हुई सच्ची मछलियों के समान दिख रही थीं। रघुरश्रु मुखस्य तस्य तत्कृतवानीप्सित मात्मजप्रियः । 8/13
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अपने पुत्र अज को रघु बहुत प्यार करते थे, इसलिए अज का आँसुओं से भरा मुख देखकर वे रुक तो गए।
परिवाहमिवालोकयन्खशुचः पौरवधूमुखाश्रुषु । 8 / 74
तब उन्हें देखकर नगर की स्त्रियाँ फूट-फूटकर रोने लगीं, मानो अज का शोक इतने मुखों से आँसुओं के रूप में बह निकला।
उप
तनुतां मधुखंडिता हिमकरोदयपाण्डुमुखच्छविः । 9 / 38
वैसे ही रात्रि रूपी नायिका भी वसंत के आने से छोटी होती चली गई और उसका चन्द्रमा वाला मुख भी पीला पड़ता गया ।