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रघुवंश
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जैसे वायु के रूक जाने पर कमल निश्चल हो जाता है, वैसे ही वे एकटक होकर अपने पुत्र का मुँह देखने लगे। लक्ष्मीविनोदयति येन दिगन्तलम्बी सोऽपि त्वदानन रुचिं विजहाति चन्द्रः।
5/67 तुम्हारी सौंदर्य-लक्ष्मी ने जब यह देखा कि तुम निद्रारूपी दूसरी स्त्री के वश में हो, तब वह तुम्हें चाहते रहने पर भी रूष्ट होकर तुम्हारे ही मुख के समान सुन्दर चन्द्रमा के पास चली गई थी। शुशुभिरे स्मितचारुतरानना स्त्रिय इव श्लथशिंजित मेखलाः। 9/37 मानो उनमें मुस्कराती हुई सुन्दर मुखवाली और ढीली होने के कारण बजती हुई करधनी वाली स्त्रियाँ विहार कर रही हों। तस्य कर्कश विहार संभवम् स्वेदमाननविलग्नजालकम्। 9/68 कठिन परिश्रम से उनके मुँह पर जो पसीना छा गया था, उसे वन के उस वायु ने सुखा दिया। शापोऽप्यदृष्ट तनयाननपद्मशोभे सानुग्रहो भगवता मयिपातितोऽयम्।9/80 हे मुनि! मुझे आज तक पुत्र के मुखकमल का दर्शन तक नहीं हुआ है, इसलिए मैं आपके शाप को वरदान ही समझता हूँ क्योंकि इसी बहाने मुझे पुत्र तो प्राप्त होगा। ससत्त्वमादाय नदीमुखाम्भः संमीलयन्तो विवृताननत्वात्। 13/10 ये बड़े-बड़े मगरमच्छ अपना मुँह खोलकर मछलियों को लिए हुए समुद्र का
जल पी जाते हैं और फिर मुँह बंद करके। 2. मुख :-[खन् + अच्, डित् धातोः पूर्व मुट् च] मुँह, चेहरा, मुख।
मनोभिरामः शृण्वन्तौ रथनेमिस्वनोन्मुखैः। 1/39 कहीं तो रथ की गड़गड़ाहट सुनकर बहुत से मोर अपना मुँह ऊपर उठाकर दुहरे मनोहर। तस्याः प्रसन्नेन्दुमुखः प्रसादं गुरुर्नृपाणां गुरवे निवेद्य। 2/68 निर्मल चन्द्रमा के समान सुन्दर मुख वाले राजा दिलीप की प्रसन्नता को देखकर ही वशिष्ठ जी सब बातें पहले से समझ गए। शरीरसादादसमग्रभूषणा मुखेन सालक्ष्यत लोध्रपाण्डुना। 3/2 गर्भिणी होने से रानी दुबली पड़ गई थीं, इसलिए उन्होंने अपने सभी गहने उतार डाले। उनका मुँह लोध के फूल के समान पीला पड़ गया।
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