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रघुवंश
लक्ष्मणः प्रथमंश्रुत्वा कोकिला मंजुवादिनीम्। 12/39
लक्ष्मण ने पहले कोयल की मीठी बोली के समान बोली सुनी। 3. परभृत :-[पृ०+अप्, कर्तरि अच् वा+भृतः] कोयल।
परभृता विरुतैश्च विलसिनः स्मरबलैरबलैकरसाः कृताः। 9/4 कोयल की कूकों की सेना लेकर चलने वाले कामदेव ने ऐसा जाल बिछाया कि सभी विलासी पुरुष युवती स्त्रियों के प्रेम में सुध-बुध खो बैठे। परभृताभिरितीव निवेदिते स्मरमते रमते स्म वधूजनः। 9/41 उन दिनों कोयल की कूक मानो कामदेव का यह आदेश सुना रही थी, हे स्त्रियो! रूठना छोड़ दो।
अपचार
1. अपचार :-[अप्+च+घञ्] कमी, अभाव, दोष, अपराध, दुष्कर्म।
राजन्ग्रजासु ते कश्चिदपचारः प्रवर्तते। 15/47
हे राजन् ! आपकी प्रजा में कुछ वर्ण संबंधी दोष आ गया है। 2. विक्रिया :-[वि+कृ+श+टाप्] विक्षोभ, उद्वेग, क्रोध, दोष, अपराध।
इत्याप्त वचनाद्रामो विनेष्यन्वर्ण विक्रियाम्। 15/48 इस विश्वास भरे वचन को सुनकर यह देखने के लिए कि वर्ण-धर्म में कहाँ दोष आया है।
अपसर्प 1. अपसर्प :-[अप+सृप्+ण्वुल्, स्वार्थे कन् च] गुप्तचर, जासूस, दूत।
सोधिराजोरुभुजोऽपसर्प पप्रच्छ भद्रं विजितारिभद्रः। 14/31 शेषनाग के समान बड़ी-बड़ी बाँहों और जाँघों वाले शत्रु विजयी राम ने अपने
भद्र नाम के दूत से पूछा कि हमारे विषय में प्रजा क्या कहती हैं। 2. प्रणिधि :-[प्र+नि+धा+कि] जासूस, भेदिया, दूत।
न तस्य मंडले राज्ञो न्यस्त प्रणिधिदीधितेः। 17/48 अतिथि ने चारों ओर दूतों का ऐसा जाल बिछा दिया कि प्रजा की कोई बात उनसे छिपी नहीं रह पाती थी।
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