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रघुवंश
247 भ्रमरैः कुसुमानुसारिभिः परिकीर्णा परिवादिनी मुनेः। 8/35 वह माला तो गिर गई पर फूलों के साथ लगे हुए भौरे अभी तक नारदजी की वीणा पर मंडरा रहे थे। श्रुतिसुख भ्रमर स्वनगीतयः कुसुमकोमल दन्तरुचो बभुः। 9/35 मानो कानों को सुख देने वाली भौंरों की गुंजार ही उनके गीत हों, खिले हुए कोमल फूल ही उनकी हँसी के दाँत हों। तनुलता विनिवेशित विग्रहा भ्रमरसंक्रमिते क्षणवृत्तयः। 9/52 . कोमल लताओं का रूप धारण करके भौरों की आँखों से वनदेवता भी। प्रत्येक निक्षिप्त पदः सशब्दं संख्यामिवैषां भ्रमरश्चकार। 16/47 संध्या को गुनगुनाते हुए भौरे, उसके एक-एक फूल पर बैठकर, मानो फूलों की गिनती करने लगे थे। 5. मधुकर :-[मधु+करः] भौंरा।
मधुकरैरकरोन्मधुलोलुपैर्बकुलमाकुल मायत पंक्तिभिः। 9/30 बकुल के जो वृक्ष फूल उठे थे, उनको झुंड बनाकर उड़ते हुए मधु के लोभी भौंरों
ने बड़ा झकझोरा। 6. मधुलिह :-[मधु+लिह्] भौंरा।
मधुलिहां मधुदान विशारदाः कुरबका रवकारणतां ययुः। 9/29 कुरबक के पेड़ों से इतना मधु बह रहा था कि भौरे मस्त होकर उन्हीं पर गुनगुना
रहे थे। 7. शिलीमुख :-[शिलि+ङीष् मुख:] भौंरा।
करेषु करिणां पेतुः पुनांगेभ्यः शिलीमुखाः। 4/57 नागकेसर के फूलों पर बैठे हुए भंवरों को जब हाथियों के कपोलों से टपकते हुए
मद की गंध मिली, वे उन्हें छोड़कर इन पर आ टूटे। 8. षट्पद :-[सो+क्विप्, पृषो०+पदः] भौंरा।
न हि प्रफुल्लं सहकारमेत्य वृक्षान्तरं कांक्षति षट्पदाली। 6/69 क्योंकि जब आम के वृक्ष पर भौंरों का झुंड पहुँच जाता है, तब उन्हें दूसरे वृक्ष के पास जाने की चाह नहीं रहती। कुसुमजन्म ततो नवपल्लवास्तदनु षट्पदकोकिल कूजितम्। 9/26 पहले फूल खिले, फिर नई कोपलें फूटी, फिर भौरे गूंजने लगे और तब कायेल की कूक भी सुनाई पड़ने लगी।
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