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कालिदास पर्याय कोश उपचितावयवा शुचिभिः कठोरलिकदम्बकयोग मुपेयुषी। 9/44 तिलक के फूलों के गुच्छे उजले पराग से भरे बढ़ चुके थे, उन पर मंडराते हुए भौंरों के झुंड के कारण। कुसुमकेसर रेणु मलिव्रजाः सपवनोपवनोत्थित मन्वयुः। 9/45 उपवन के फूलों का पराग जो वायु ने उड़ाया, तो भौंरों के झुड के झुंड भी उसके पीछे-पीछे उड़ चले। अथ मद गुरुपौर्लोकपाल द्विपानाम नुगतमलि वृन्दैर्गण्डभित्ती विहाय।
12/102 जिनकी सुगंध पाकर मद से भीगी हुई पंखों वाले भौरे दिशाओं के हाथियों के
मद बहाने वाले कपोलों को छोड़कर रस लेने उनके पीछे-पीछे दौड़ पड़े। 2. द्विरेफ :-[द्वि+रेफ:] भौंरा।
मदोत्कटे रेचित पुष्पवृक्षा गंध द्विपे वन्य इव द्विरेफाः। 6/7 जैसे फूल वाले वृक्षों को छोड़कर मद बहाने वाले जंगली हाथियों पर भौरे झुक पड़ते हैं। कश्चित्कराभ्यामुपगूढ़ नालमालोलपत्राभिहत द्विरेफम्। 6/13 कोई राजा हाथ में सुन्दर कमल लेकर उसकी डंठल पकड़कर घुमाने लगा,
उसके घूमने से तो भौरे इधर-उधर भाग गए। 3. पतत्रिन :-[पतत्र+इनि] भौरे।
अभिययुः सरसो मधु संभृतां कमलिनीमलिनीरपतत्रिणः। 9/27 वैसे ही वसन्त की शोभा से लदी हुई ताल की कमलिनी के आस-पास भौरे
और हंस भी मंडराने लगे। 4. भ्रमर :-[भ्रम्+करन्] भौंरा।
तिरश्चकार भ्रमराभिलीनयोः सुजातयोः पंकजकोशयोः श्रियम्। 3/8 इससे रानी के स्तन ऐसे सुन्दर लगने लगे कि उनकी शोभा के आगे कमल के जोड़े पर बैठे हुए भौंरों की शोभा भी हार मान बैठी। अथोपरिष्टाभ्रमरैर्धमद्भिः प्राक्सूचितान्तः सलिलप्रवेशः। 5/43 जिसके जल में घुसने की सूचना जल के ऊपर भनभनाने वाले भंवरे दे रहे थे। प्रस्पन्दमानपरुषतरतारमन्तश्चक्षुस्तव प्रचलितं भ्रमरं च पद्मम्। 5/68 इस समय तुम्हारी बंद आँखों में पुतलियाँ घूम रही हैं और तालों में कमलों के भीतर भौरे गूंज रहे हैं।
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