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कालिदास पर्याय कोश
तथा विश्वम्भरे देवि मामन्तर्धातुमर्हसि। 15/81
तो हे धरती माता! तुम मुझे अपनी गोद में ले लो। 18. सागराम्बरा :-[सगरेण निवृत्तः :-अण् + अम्बरा] पृथ्वी
निधान गर्भामिव सागराम्बरां शमीमिवाभ्यन्तरलीन पावकाम्। 3/9 जैसे अमूल्य रत्नों से भरी हुई पृथ्वी, अपने भीतर अग्नि रखने वाला शमी का
वृक्ष। 19. स्थली :-[स्थल + ख्रीप्] भूमि, पृथ्वी।
तमालपत्रास्तरणासु रन्तुं प्रसीद शश्वन्मलयस्थलीषु। 6/64 यदि तुम सदा मलय भूमि की उन घाटियों में विहार करना चाहो, जिसमें स्थान-स्थान पर ताड़ के पत्ते फैले हुए हैं, तो इनसे विवाह कर लो। चिक्लिशु शतया वरूथिनीमुत्तटा इव नदीरयाः स्थलीम्। 11/58 जैसे बढ़ी हुई नदी की धारा आसपास की भूमि को उजाड़ देती है, वैसे ही एक दिन मार्ग में (वायु ने) सेना को व्याकुल कर दिया। तं विनिष्पिष्य काकुत्स्थो पुरा दूषयति स्थलीम्। 12/30 पर राम लक्ष्मण ने उसे तत्काल मार डाला, कहीं इसके शरीर की दुर्गंध भूमि को दूषित न करे दे यह सोचकर।
भूषण 1. आकल्प :-[आ + कृप् + णिच् + घञ्] आभूषण, अलंकार।
आकल्प साधनैतैस्तैरुप सेदुः प्रसाधकाः। 17/22 सिंगारियों ने सब प्रकार से सजा दिया। अकृतकविधि सर्वांगीणमाकल्पजातं विलसितपदमाद्यं यौवनं स प्रपेदे।
18/52 वह जवानी आ गई, जो शरीर की स्वाभाविक शोभा होती है और विलास का
पहला अड्डा होता है। 2. आभरण :-[आ + भृ + ल्युट्] आभूषण, सजावट।
कुतः प्रयलो न च देव लब्धं मग्नं पयस्या भरणोत्तमं ते। 16/76 हे देव! बहुत परिश्रम करने पर भी हम लोग जल में पड़े हुए आपका आभूषण नहीं पा सके।
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