________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
243
लब्ध पालनविधौ न तत्सुतः खेदमाप गुरुणा हि मेदिनी। 19/3
पिता से पाई हुई पृथ्वी का पालन करने में पुत्र को कोई कठिनाई नहीं हुई। 14. वसुधा :-[वस् + उन् + धा] पृथ्वी।
तया मेने मनस्विन्या लक्ष्या च वसुधा धिपः। 1/32 पृथ्वी पति राजा दिलीप लक्ष्मी के समान मनस्विनी केवल अपनी पत्नी सुदक्षिणा के कारण ही। भस्ममात्कृतवतः पितृद्विषः पात्रसाच्च वसुधां ससागराम्। 11/86 पिता के शत्रुओं का नाश करने वाले और सागर तक फैली हुई पृथ्वी ब्राह्मणों को दान देने वाले। गन्धे ना शुचिना चेति वसुधायां निचलतुः। 12/30 यह सोचकर उसे पृथ्वी में गाड़ दिया कि कहीं इसके शरीर की दुर्गन्ध न फैल
जाये।
शोचनीयासि वसुधे या त्वं दशरथाच्च्युता। 15/43
हे पृथ्वी! दशरथ से छूटकर तुम्हारी दशा बड़ी शोचनीय हो गई है। 14. वसुन्धरा :-[वसूनि धारयति :-वसु + धृ + णिच् + खच् + टाप्, मुम्]
पृथ्वी। तथाप्यनन्य पूर्वेव तस्मिन्नासीद्वसुंधरा। 4/7 पर वह पृथ्वी ऐसी नई जान पड़ती थी, मानो पहले-पहल रघु के हाथों में आई
हो।
समुद्ररशना साक्षात्प्रादुरासीद् वसुंधरा। 15/83 समुद्र की तगड़ी पहने साक्षात् धरती माता प्रकट हुईं। वसुंधरा विष्णुपदं द्वितीय मध्यारुरोहेव रजश्छलेन। 16/28 उड़ती हुई धूल ऐसी जान पड़ रही थी मानो पृथ्वी विष्णु के दूसरे पद (आकाश)
में पहुंच गई हो। 16. वसुमति :-[वसु + मतुप् + ङीप्] पृथ्वी।
वसुधेयमवेक्ष्यतां त्वया वसुमत्या हि नृपाः कलत्रिणः। 8/83 सावधान होकर आप पृथ्वी का पालन कीजिए, क्योंकि राजाओं की सच्ची
सहधर्मचारिणी तो पृथ्वी है। 17. विश्वम्भरा :-[विश्वं विभर्ति विश्व + भृ + खच्, मुम्] पृथ्वी।
For Private And Personal Use Only