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रघुवंश
217 इन्द्र के समान संपत्तिशाली राजा दिलीप ने प्रजा का आदर पाकर उस अयोध्या नगरी में प्रवेश किया, जिसमें उनके स्वागत के लिए झंडे ऊँचे कर दिए गए थे। तिरश्चकार भ्रमराभिलीनयोः सुजातयोः पंकजकोशयोः श्रियम्। 3/8 उनकी शोभा के आगे कमल के जोड़े पर बैठे हुए भौंरों की शोभा भी हार मान
बैठी।
प्रलय
1. प्रलय :-[प्र+ली+अच्] विनाश, संहार, विघटन, व्यापक विनाश।
अस्याच्छमम्भः प्रलयप्रवृद्धं मुहूर्तवक्त्राभरणं बभूव। 13/8 उस समय प्रलय से बढ़ा हुआ इसका स्वच्छ जल, क्षण भर के लिए उसका
चूंघट बन गया था। 2. युगान्त :-[युज्+घञ्-कुत्वम्, गुणाभाव:+अन्तः] युग का अंत, सृष्टि का
अंत या विनाश। अमुं युगान्तोचित योगनिद्रः संहृत्य लोकान्पुरुषोऽधिशेते। 13/6 जब आदि पुरुष विष्णु भगवान् तीनों लोकों का संहार कर चुकते हैं, तब वहीं पहुँचकर योगनिद्रा में सोते हैं।
प्रासाद 1. उपकार्या :-[उप+कृ+ण्यत्] राजभवन, महल।
तस्योपकार्यारचितोपचारा वन्येतरा जनपदोपदाभिः। 5/41 वहाँ के पास के गाँव वालों ने अज के लिए अच्छी-अच्छी वस्तुएँ भेंट में लाकर दी। वे ग्रामीण स्थान भी ऐसे लगने लगे, मानो अज राजसी विलासगृहों में हो। रम्यां रघुप्रतिनिधिः स नवोपकार्यावाल्यात्परामिव दशां मनोऽध्युवास।
5/63 उस भवन में रघु के प्रतिनिधि अज ऐसे रहने लगे, मानो कामदेव ने अपना बचपन बिताकर जवानी में पैर धरा हो। निशान्त :-[नि+शम्+क्त] घर, आवास, निवास। तस्याः स राजोपपदं निशान्तं कामीव कान्ताहृदयं प्रविश्य। 16/40 जैसे कामी पुरुष स्त्री के हृदय में पैठ जाता है, वैसे ही कुश भी अयोध्या के राजभवन में प्रविष्ट हो गए।
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