________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
215
6. प्रभा :-[प्र+भा+अ+टाप्] प्रकाश, दीप्ति, कान्ति।
प्रचक्रमे पल्लवराग ताम्रा प्रभा पतंगस्य मुनेश्च धेनुः। 2/15 दिन ढलने पर नये पत्तों की ललाई के सामने, सूर्य की ललाई के समान लाल रंग की गाय, नंदिनी तपोवन की ओर लौट पड़ी। वामेतरस्तस्य करः प्रहर्तुनखप्रभाभूषितकंक पत्रे। 2/31 उनके दाएं हाथ की उँगलियाँ, उनके नखों से चमकने वाले बाणों के पंखों से चिपक गईं। आदेयमासीत्रयमेव भूपतेः शशिप्रभं क्षत्रमुभे च चामरे। 3/16 यह सुनकर वे इतने प्रसन्न हुए कि छत्र और चँवर तो न दे सके, शेष सब आभूषण उन्होंने उतार कर उसे दे डाले। महीध्र पक्षव्यपरोपणो चितं स्फुरत्प्रभामंडलमस्त्रमाददे। 3/60 पर्वतों के पंख काटने वाले अग्नि के समान चमकीले वज्र को उठा लिया। प्रसादसुमुखे तस्मिंश्चन्द्रे च विशदप्रभे। 4/18 शरद ऋतु में रघु के खिले हुए मुख और उजले चन्द्रमा दोनों को। स्फुरप्रभा मण्डलमध्यवर्ति कान्तंवपुर्पोमचरं प्रपेदे। 5/51 देवताओं के समान सुन्दर और तेजपूर्ण शरीर लेकर खड़ा हो गया। उवाच वाग्मी दशनप्रभाभिः संवर्धितीरः स्थलतारहारः। 5/52 जब उसने बोलने के लिए मुँह खोला, तब उसके दाँतों की चमक से उसके गले में पड़ा हुआ हार दमक उठा। तिर्यग्वि संसर्पिनखप्रभेण पादेन हैमं विलिलेख पीठम्। 6/15 पैर के नखों की चमक तिरछी डालते हुए, पैर की उँगलियों से सोने के पाँव-पीढ़े पर कुछ लिखने लगा। रत्नांगुलीयप्रभयानुविद्वानुदीरयामास सलीलमक्षान्। 6/18 वे अपने हाथ में पासे उछाल रहे थे और उनकी अंगूठी की झलक पासों पर पड़ रही थी। कुर्वन्ति सामन्त शिखा मणीनां प्रभाप्ररोहास्तमयं रजांसि। 6/33 घोड़ों की टापों से उठी हुई धूल से शत्रुओं के मुकुटों की चमक धुंधली पड़ जाती
तस्मिनसमविशित चितवृत्तिमिन्दु प्रभामिन्दुमतीमवेक्ष्य। 6/70
For Private And Personal Use Only