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कालिदास पर्याय कोश
कुसुमजन्म ततो नवपल्लवास्तदनु षट्ट्कोकिलकूजितम् । 9/26
पहले फूल खिले, फिर नई कोपलें फूटीं, फिर भरे गूंजने लगे और तब कोयल की कूक भी सुनाई पड़ने लगी ।
कुसुमेव न केवलमार्तवं नवमशोकतरोः स्मरदीपनम् । 9/28
उन दिनों वसंतं में फूले हुए अशोक के फूलों को देखकर ही कामोद्दीपन नहीं
होता था ।
सुवदनावदनासवसंभृतस्तदनुवादिगुणः कुसुमोद्गमः । 9 / 30
बकुल के जो वृक्ष सुन्दरी स्त्रियों के मुख की मदिरा के कुल्ले से फूल उठे थे और जिनमें उन्हीं स्त्रियों के समान गुण भी भरे थे ।
सुरभिगन्धिषु शुश्रुविरे गिरः कुसुमितासु मिता वनराजिषु । 9/34 जिस समय मनोहर सुगन्ध वाली वन की फूली हुई लताओं पर कोयल ने कूक सुनाई ।
श्रुतिसुख भ्रमरस्वनगीतयः कुसुमकोमल दन्तरुचो बभुः । 9/3
मानो कानों को सुख देने वाली भौंरों की गुंजार ही उनके गीत हों, खिले हुए कमल के फूल ही उनकी हँसी के दाँत हों ।
युवतयः कुसुमं दधुराहितं तदलके दलकेसरपेशलम् । 9/40
अपने प्रियतमों के हाथों से जूड़ों में खँसे हुए वे सुन्दर पंखड़ी वाले और पराग वाले फूल स्त्रियों के केशों में बड़े सुन्दर लग रहे थे ।
अलिभिरंजन बिन्दु मनोहरैः कुसुमपंक्तिनिपातिभिरंकितः । 9/41 उस तिलक वृक्ष के फूलों पर मंडराते हुए काजल की बुंदियों के समान सुन्दर और ऐसे जान पड़ते थे, मानो वनस्थलियों का मुख भी चीत दिया गया हो । कुसुमसंभृतया नवमल्लिका स्मितरुचा तरुचारु विलासिनी। 9/42 फूलों की मुस्कान लेकर वृक्षों की सुंदरी नायिका नवमल्लिका लता देखने वालों को पागल बनाए डालती थी ।
कुसुम केसर रेणुमलिव्रजाः सपवनो पवनोत्थितमन्वयुः । 9/45 उपवन के फूलों का पराग जो वायु ने उड़ाया, तो भौंरो के झुण्ड भी उसके पीछे-पीछे उड़ चले।
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स ललितकुसुमप्रवालशय्यां ज्वलित महौषधि दीपिकासनाथाम् । 9/70 उन्हें सारी रात फूल-पत्तों की सांथर पर, रात को चमकने वाली बूटियों के प्रकाश के सहारे, बिना किसी सेवक के अकेले ही काटनी पड़ी।