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रघुवंश
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पुरोध
1. पुरोध : - [ पूर्व + असि, पुरा आदेश: +धस् ] कुलपुरोहित, पुरोहित । तत्रार्चितो भोजपतेः पुरोधा हुत्वाग्निमाज्यादिभिरग्निकल्पः । 7/20 वहाँ विदर्भ-राज के अग्नि के समान तेजस्वी पुरोहित ने घी आदि सामग्रियों से हवन करके ।
2. पुरोहित - [ पूर्व + असि, पुर आदेश: + हित] कुलपुरोहित ।
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पुरोहित पुरोगास्तं जिष्णुं जत्रैरथर्वभिः । 17/13
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तब पुरोहित जी को आगे करके ब्राह्मण आए और उन्होंने विजयी राजा को अथर्ववेद के उन मंत्रों को पढ़कर।
पुष्प
1. कुसुम :- [ कुष् + उम् ] फूल ।
कुसुमैर्ग्रथिवामपार्थिवैः स्रजमातोघशिरोनिवेशिताम् । 8/34
उनकी वीणा के सिरे पर स्वर्गीय फूलों से गुँथी हुई माला लटकी हुई थी। भ्रमरैः कुसुमानुसारिभिः परिकीर्णा परिवादिनी मुनेः । 8/35
वह माला तो गिर गई, पर फूलों के साथ लगे हुए भौरे अभी तक नारदजी की वीणा पर मँडरा रहे थे ।
कुसुमान्यपि गात्रसंगमात्प्रभवन्त्यायुर पोहितं यदि । 8/44
हाय ! जब फूल भी शरीर को छूकर प्राण ले सकते हैं, तब तो दैव जब किसी को मारना चाहेगा तब ।
कुसुमोत्खचितान्वलीभृतश्चलयन्भृंगरुचस्तवालकान् । 8 /53
फूलों से गुँथीं और भौंरों के समान काली तुम्हारी लटें, जब वायु से हिलती हैं । कुसुमं कृत दोहदस्त्वया यदशोकोऽपमुदीरयष्यति । 8 / 62
जिस अशोक को तुमने अपने चरणों को ठोकर लगाई थी, वह आगे चलकर फूलेगा, तब उसके फलों को मैं ।
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अथसमाववृते कुसुमैर्नवैस्तमिव सेवितुमेकनराधिपम् । 9/24
उन एकच्छत्र राजा का अभिनंदन करने के लिए वसंत ऋतु भी नये-नये फूलों की भेंट लेकर, वहाँ आ पहुँची ।