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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 195 हस्तेन हस्तं परिगृह्य वध्वाः स राजसूनुः सुतरां चकासे। 7/21 वैसे ही जब रघु के पुत्र अज ने अपनी बहू का हाथ थामा, तब वे भी बहुत सुन्दर लगने लगे। प्रियंवदात्प्राप्तमसौ कुमारः प्रायुक्त राजस्व धिराजसूनुः। 7/61 तब महाराज रघु के पुत्र, सावधान अज ने प्रियंवद का दिया हुआ। दुरितैरपि कर्तुमात्मसात्प्रयतन्ते नृपसूनवो हि यत्। 8/2 जिस राज्य को पाने के लिए दूसरे राज कुमार खोटे उपायों को प्रयोग करने में भी संकोच नहीं करते। तेनाष्टौ परिगमिता समाः कथंचिद् बाल त्वाद् वितथसूनृतेन सूनोः। 8/92 प्रिय, सत्यभाषी अज ने अपने पुत्र के बचपन का ध्यान करके किसी प्रकार आठ वर्ष बिता दिए। बालसूनुरवलोक्य भार्गवं स्वां दशां च विषसाद पार्थिवः। 11/67 जब दशरथ जी ने परशुराम को देखा, तब उन्हें अपनी दशा देखकर बड़ी चिंता हुई क्योंकि उनके पुत्र अभी बालक ही थे। प्रजानिषेकं मयि वर्तमानं सूनोरनुध्यायत चेतसेति। 14/60 मेरे गर्भ में आपके पुत्र का तेज है इसलिए आप लोग हृदय से उसकी कुशल मनाते रहिएगा। तद्योगात्पतिवत्नीषु पत्नीष्वासन्द्विसूनवः। 15/35 अपनी-अपनी पत्नियों के साथ संभोग करके दो-दो पुत्र उत्पन्न किए। तस्या भवत्सूनुरुदारशील: शिल: शिलापट्ट विशालवक्षाः। 18/17 उन्हें शिल नामका बड़ा शीलवान् पुत्र हुआ, जिसकी छाती पत्थर की पाटी जैसी चौड़ी थी। महीं महेच्छः परिकीर्य सूनौ मनीषिणे जैमिनयेऽर्पितात्मा। 18/33 राजा पुत्र बड़े उदार हृदय वाले थे, उन्होंने पृथ्वी का भार अपने पुत्र को सौंप दिया और स्वयं जैमिनी ऋषि के शिष्य होकर। पुरुष 1. पुंस :-(पुं०) [पा+डुयसुन्] पुरुष, नर। अनुप्रवेशादाद्यास्य पुंसस्तेनापि दुर्वहम्। 10/51 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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