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कालिदास पर्याय कोश
दो तेजस्वी पुत्रों को उसी प्रकार जन्म दिया, जैसे पृथ्वी अपने राजा के लिए धन और सैन्य उत्पन्न करती हैं।
तद्वियोग व्यथां किंचिच्छिथिली चक्रतुः सुतौ । 15/34
उन दोनों पुत्रों ने वियोग से व्यथित सीता का बहुत मन बहलाया । अवैमि कार्यान्तर मानुषस्य विष्णोः सुताख्यामपरां तनुं त्वाम् । 16/82 मैं यह जानता हूँ कि आप राक्षसों का नाश करने के लिए मनुष्य का शरीर धारण करने वाले विष्णु के ही दूसरे रूप अर्थात पुत्र हैं ।
अनीकिनानां समरेऽग्रयायी तस्यापि देवप्रतिमः सुतोऽभूत् । 18 / 10 इन्द्र के समान पुत्र हुआ जो युद्ध में सेना के आगे-आगे चलता था, और जिसका देव शब्द से आरंभ होने वाला और अनीक शब्द से अंत होने वाला देवानीक
नाम था ।
वशी सुतस्य वंश वदत्वात्स्वेषामिवासी द्विष तामपीष्टः । 18/13
उनके जितेन्द्रिय पुत्र देवानीक इतना मधुर बोलते थे, कि शत्रु भी उनका मित्र के समान ही आदर करते थे ।
सुतोऽभवत्पंक जनाभकल्पः कृत्स्नस्य नाभिर्नृपमंडलस्य । 18 / 20
शिल को उन्नाभ नामक प्रसिद्ध पुत्र हुआ, जो विष्णु के समान पराक्रमी होने के कारण संसार के सभी राजाओं के मुखिया बन गए।
लब्ध पालनविधौ न तत्सुतः खेदमाप गुरुणा हि मेदिनी । 19/3
पितासे पाई हुई पृथ्वी का पालन करने में पुत्र अग्निवर्ण को कोई कठिनाई नहीं हुई क्योंकि उनके पिता ने शत्रुओं को पहले ही हरा दिया था।
17. सूनु: - [ सू+नुक् ] पुत्र, बाल-बच्चा ।
सूनुः सूनृतवाक्स्त्रष्टर्विससर्जोर्जित श्रियम् । 1/93
विद्वान सत्यवक्ता, ब्रह्मा के पुत्र वशिष्ठजी ने राजा दिलीप को सोने की आज्ञा दी। दिलीपसूनुर्मणिराकरोद्भवः प्रयुक्तसंस्कार इवाधिकं बभौ । 3/18 संस्कार हो जाने पर दिलीप का वह पुत्र वैसे ही सुन्दर लगा, जैसे खान से निकलकर खरादा हुआ हीरा ।
अथ स विषयव्यावृतात्मा यथाविधि सूनवे नृपति ककुदं दत्वा यूने सितातपवारणम् । 3/70
तब संसारके सब विषय छोड़कर राजा दिलीप ने अपने नवयुवक पुत्र रघु को शास्त्रों के अनुसार छत्र, चंवर आदि राजचिह्न दे दिए।
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