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रघुवंश
191 सोऽपश्यत्प्रणि धानेन संततेः स्तम्भकारणम्। 1/74 वशिष्ठजी ने अपने योग के बल से ध्यान किया कि पवित्र आत्मा वाले राजा को पुत्र क्यों नहीं हुआ। निदानमिक्ष्वाकुकुलस्य संततेः सुदक्षिणा दौर्हदलक्षणं दधौ। 3/1 धीरे-धीरे रानी सुदक्षिणा के शरीर में उस गर्भ के लक्षण दिखाई देने लगे, जो इस बात का प्रमाण थे कि अब इक्ष्वाकु वंश नष्ट नहीं होगा। अतिष्ठत्प्रत्ययापेक्ष संततिः स चिरं नृपः। 10/3 वैसे ही संतान के लिए उपाय होने तक राजा दशरथ को भी ठहरना पड़ा। वन्येन सा वल्कलिनी शरीरं पत्युः प्रजा संततये बभार। 14/82 वृक्षों की छाल के कपड़े पहनती थीं और केवल पति का वंश चलाने की इच्छा से ही कन्द-मूल खाकर शरीर धारण करती थीं।। स पृष्टः सर्वतो वार्तमाख्यद्राज्ञेन संततिम्। 15/41 राम के पूछने पर उन्होंने और सब बातें तो कह सुनाई, पर पुत्र होने की बात नहीं
कही। 15. संतान :-[सम्+तनु+घञ्] प्रजा, औलाद, बाल-बच्चा।
संतानार्थाय विधये स्वभुजादवतारिता। 1/34 तब उन्होंने निश्चय किया कि संतान उत्पन्न करने के लिए कुछ न कुछ उपाय करना ही चाहिए। इसके लिए पृथ्वी का भार अपने कंधों से उतारकर। संतानकामाय तथेति कामं राज्ञे प्रतिश्रुत्य पयस्विनी सा। 2/65 नंदिनी ने संतान माँगने वाले राजा दिलीप से प्रतिज्ञा की कि मैं तेरी इच्छा पूर्ण करूंगी। ऋष्यशृंगादयस्तस्य सन्तः संतानकांक्षिणः। 10/4 तब ऋष्य शृंग आदि संत ऋषियों ने संतान चाहने वाले राजा दशरथ के लिए। संतानकामयी वृष्टिर्भवने चास्य पेतुषी। 10/77 संतान प्राप्त करने वाले राजा दशरथ के राजभवन पर आकाश से कल्प वृक्ष के फूलों की जो वर्षा हुए उसी से। संतानश्रवणाद्भातुः सौमित्रिः सोमनस्यवान्। 15/14 भाई के पुत्र होने की बात सुनकर शत्रुघ्न का जी खिल गया। प्रतिकृतिरचनाभ्यो इतिसंदर्शिताभ्यः समधिकतर रूपाः शुद्ध संतान कामैः।
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