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कालिदास पर्याय कोश 13. प्रसूति :-[प्र+सू+क्तिन्] प्रसर्जन, जनन, जन्म देना, पैदा करना, पुत्र ।
स्थित्यै दण्डयतो दण्डयान्परिणेतुः प्रसूतये। 1/25 अपराधी को दण्ड दिए बिना राज्य नहीं ठहर सकता , इसलिए अपराधियों को उचित दंड देते थे, सन्तान उत्पन्न करके वंश चलाने की इच्छा से ही उन्होंने विवाह किया। मत्प्रसूतिमनाराध्य प्रजेति त्वां शशाप सा। 1/77 इसका दंड यही है कि जब तक तुम मेरी संतान की सेवा नहीं करोगे, तब तक तुम्हें पुत्र नहीं होगा। न चान्यतस्तस्य शरीररक्षा स्ववीर्यगुप्ताहिमनोः प्रसूतिः। 2/4 रही अपने शरीर रक्षा की बात उसके लिए उन्होंने किसी सेवक की आवश्यकता नहीं समझी, क्योंकि जिस राजा ने मनु के वंश में जन्म लिया हो, वह अपनी रक्षा तो स्वयं ही कर सकता है। न केवलानां पयसां प्रसूतिमवेहि मां कामदुधां प्रसन्नाम्। 2/63 तुम मुझे केवल दूध देने वाली साधारण गौ न समझना, प्रै प्रसन्न हो जाऊँ, तो मुझसे जो माँगा जाय, वही फल दे सकती हूँ। तदंकशय्या च्युतनाभिनाला कच्चिन्मृगीणामनघा प्रसूतिः। 5/7 हरिणियों के वे छोटे-छोटे बच्चे तो कुशल से हैं न, जिनकी नाभि का नाल ऋषियों की गोद में ही सूखकर गिरता है। प्रसूतिं चकमे तस्मिं त्रैलोक्यप्रभवोऽपि यत्। 10/53 विष्णु भगवान् को भी उनके यहाँ जन्म लेने की इच्छा होने लगी। अथाग्य महिषी राज्ञः प्रसूतिसमये सती। 10/66 राजा की पटरानी कौशल्या ने तमोगुण को दूर करने वाला पुत्र उत्पन्न किया। साहं तपः सूर्य निविष्टदृष्टिरूर्ध्वं प्रसूतेश्चरितुं यतिष्ये। 14/66 पर पुत्र हो जाने पर, मैं सूर्य में दृष्टि बाँधकर ऐसी तपस्या करूँगी कि। इतो भविष्यत्यनघप्रसूतेरपत्य संस्कारमयो विधिस्ते। 14/75
तुम्हारी पवित्र सन्तान के जातकर्म आदि संस्कार मैं यहीं करूंगा। 14. संतति :-[सम्+तन्+क्तिन्] संतान, प्रजा।
संततिः शुद्धवंश्या हि परत्रेह च शर्मणे। 1/69 पर अच्छी संतान सेवा-सुश्रूषा करके इस लोक में तो सुख देती ही है, साथ ही परलोक में भी सुख देती है।
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