________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
173
कहीं नीले और श्वेत कमलों की मिली हुई माला जैसी दिखाई पड़ रही है। स तद्वक्त्रं हिमक्लिष्टकिंजल्कमिव पंकजम्। 15/52 आग की चिनगारियों से झुलसी दाढ़ीवाला उसका सिर ऐसा लगा रहा था, जैसे पाले से जली हुई केशरवाला कमलगट्टा हो। भेजिरे नवदिवाकरात पस्पृष्टपंकजतुलाधिरोहणम्। 19/8
जो प्रभात की लाल किरणों से भरे हुए कमल के समान था। 12. पद्म :-[पद्+मन्] कमल।
निवातपद्मस्तिमितेन चक्षुषा नृपस्य कान्तंपिबतः सुताननम्। 3/17 वे तत्काल भीतर गए और जैसे वायु के रुक जाने पर कमल निश्चल हो जाता है, वैसे ही एकटक होकर अपने पुत्र का मुँह देखने लगे। यवनीमुख पद्मानां सेहे मधुमदं न सः। 4/61 वैसे ही रघु के अचानक आक्रमण से मदिरा से लाल गालों वाली यवनियों के मुख-कमल मुरझा गए। प्रस्यन्दमान परुषेतर तारमन्तश्चक्षुस्तव प्रचलित भ्रमरं च पद्मम्। 5/68 इस समय तुम्हारी बंद आँखों में पुतलियाँ घूम रही हैं और तालों में कमलों के भीतर भौरे गूंज रहे हैं। तस्मिन्नभिद्योतितबन्धुप प्रतापसंशोषित शत्रु पंके। 6/36 जैसे कुमुदिनी को वह सूर्य नहीं भाता, जो कमल को खिलाता है और कीचड़ को सुखा देता है। उपसि सर इव प्रफल्लपद्मं कुमुदवनप्रतिपन्ननिद्रमासीत्। 6/86 उस समय वह मंडप प्रातः काल के उस सरोवर जैसा लगने लगा, जिसमें एक
ओर खिले हुए कमल दिखाई दे रहे हों और दूसरी ओर मुँदे कुमुदों का झुंड खड़ा हो। शापोऽप्यदृष्टतनयाननपद्मशोभे सानुग्रहो भगवतामयि पातितोऽयम्।9/80 हे मुनि! मुझे आजतक पुत्र के मुख कमल का दर्शन तक नहीं हुआ है, इसलिए मैं आपके शाप को वरदान ही समझता हूँ, क्योंकि इसी बहाने मुझे पुत्र तो प्राप्त होगा। श्रियः पद्मनिषण्णायाः क्षोमान्तरित मेखले। 10/8 उन्हीं के पास कमल पर लक्ष्मी बैठी हुई थीं, जिनकी कमर में रेशमी वस्त्र पड़ा हुआ था।
For Private And Personal Use Only