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उष्णैर्विलोचने जलैः प्रथमाभितप्तः । 19/56 महारानी की आँखों के गरम-गरम आँसुओं से तपे हुए।
कालिदास पर्याय कोश
1. आविल : - [ आविलति दृष्टिं स्तृणाति - विल्+क तारा०] पंकिल, मैला । बभुः पिवन्तः परमार्थमत्स्याः पर्याविलानीव नवोदकानि । 7/40 मानो वर्षा का गंदा पानी पीती हुई सच्ची मछलियाँ हों ।
2. कर्दम : - [ क + अम् ] कीचड़, दलदल, पंक।
सरितः कुर्वती गाधा: पथश्चाश्यानकर्दमान् । 4/24
शरद् के आते ही नदियों का पानी उतर गया और मार्ग का कीचड़ भी सूख गया । 3. पंक :- [पंच् विस्तारे कर्मणि करणे वा घञ्, कुत्वम्] दलदल, कीचड़ । तस्मिन्नभि द्योतित बन्धु पद्मे प्रताप संशोषित शत्रु पंके | 56/36
जैसे कुमुदिनी को वह सूर्य नही भाता, जो कमल को खिलाता है और कीचड़ सुखा देता है।
रेणुः प्रपेदे पथि पंकभावं पंकोऽपि रेणुत्वमियाय नेतुः । 16/30
मार्ग की धूल कीचड़ बन गई और कीचड़ भी घोड़ों की टापों से धूल बन गई । पतत्रिण
1. खग : - [ खर्व + ड+गः ] पक्षी ।
क्वचित्खगानां प्रियमानसानां कादम्बसर्गवतीव पंक्तिः । 13/55
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कहीं साँवले रंग के हंसों से मिले हुए उजले रंग के राजहंसों की पाँत के समान शोभा दे रही है।
2. पक्षी : - [ पक्ष + इनि] पक्षी ।
जहार सीतां पक्षीन्द्र प्रयासक्षणविघ्नितः । 12 /53
सीताजी को चुरा कर ले गया, मार्ग में गृद्धराज जटायु उससे लड़ा भी । अयत्नवालव्यजनीबभूवुहंसा नभोलंघनलोल पक्षाः । 16/33
उस समय आकाश में जो चंचल पंखोंवाले हंस उड़ते थे, वे कुश पर ढलते हुए चँवर के समान लग रहे थे ।