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कालिदास पर्याय कोश एक जंगली भैंसा उनकी और झपट रहा है। उन्होंने भैंस की आँख में एक ऐसा बाण मारा कि वह भैंसे के शरीर में से इतनी फुर्ती से पार हो गया। आततज्यमकरोत्स संसदा विस्मयस्तिमितनेत्रमीक्षितः। 11/45 यह देखकर सब सभासदों को बड़ा आश्चर्य हुआ, जब राम ने वैसी ही सरलता से धनुष की डोरी चढ़ा दी। आत्मानं मुमुचे तस्मादेकनेत्र व्ययेन सः। 12/23 जब तक उसने अपनी एक आँख नहीं दे दी, तब तक उसका छुटकारा नहीं हुआ। तमश्रु नेत्रावरणं प्रमृज्य सीता विलाप द्विरता ववन्दे। 14/71 उन्हें देखकर सीताजी ने आँखों से आँसू पोंछकर व रोना बन्द कर चुपचाप उन्हें प्रणाम किया। तं प्रीतिविशदैनॆत्रैरन्वयुः पौरयोषितः। 17/35 वैसे ही नगर की स्त्रियों की प्रेम भरी आँखें अतिथि पर लटू हो गईं। अथ मधु वनितानां नेत्र निर्वेशनीयं। 18/52
वह जवानी आ गई जो स्त्रियों की आँखों की मदिरा होती है। 6. लोचन :-[लोच ल्युट्] आँख।
इति विज्ञापितो राजा ध्यानस्तिमित लोचनः। 1/73 राजा की बात सुनका वशिष्ठजी ने अपनी आँखें बन्द करके क्षण भर के लिए ध्यान लगाया। उपान्त संमीलित लोचनो नृपश्चिरात्सुत स्पर्शरसज्ञतां ययौ। 3/26 उस समय राजा आँखें बंद करके बहुत देर तक यह आनन्द लेते ही रह जाते थे। पपौ निमेषालसपक्ष्मपंक्तिरुपोषिताभ्यामिव लोचनाभ्याम्। 2/19 तब सुदक्षिणा अपलक नेत्रों से उन्हें देखती रह गई, मानो उसकी आँखें राजा दिलीप का रूप पीने की प्यासी हों। तदंग निष्यन्दजलेन लोचने प्रमृज्य पुण्येन पुरस्कृतः सताम्। 3/41 सज्जनों के सम्मानित रघु ने तत्काल नंदिनी के मूत्र को अपनी आँखों से लगाया। कामकर्णान्त विश्रांते विशाले तस्य लोचने। 4/13 यद्यपि रघु के नेत्र कानों तक फैले हुए बहुत बड़े-बड़े थे।
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