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रघुवंश
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उनकी प्रजा उन्हें ऐसा एकटक देखकर देखने लगी, जैसे लोग द्वितीया के चन्द्रमा के उदय होने पर ध्यान से देखते हैं। तयोपचारांजलिखिनहस्तया ननन्द पारिप्लवनेत्रया नृपः। 3/11 उनको प्रणाम करने के लिए जब वे हाथ जोड़ती थीं, तो हाथ ढीले हो जाते और थकावट से बार-बार आँखों में आँसू आ जाते थे। नेत्रवज्राः पौरजनस्य तस्मिन्विहाय सर्वानृपतीनिपेतुः। 6/7 वैसे सब नगरवासियों की आँखें सब राजाओं से हटकर, अज पर जा लगी थीं। तस्मिन्विधानातिशये विधातुः कन्यामये नेत्रशतैकलक्ष्ये। 6/11 वह कन्या क्या थी, ब्रह्मा की रचना की एक बहुत ही सुन्दर कला थी, जिसे सैकड़ो आँखें एकटक होकर देख रही थीं। आकुंचिताग्रांगुलिना ततोऽन्यः किंचित्समावर्जितनेत्र शोभः। 6/15 तीसरा राजा भौहें झटकाकर, पैर की उंगलियाँ मोड़कर। प्रासादवातायन संश्रितानां नेत्रोत्सवं पुष्पपुरांगनानाम्। 6/20 तब वहाँ की स्त्रियाँ झरोखों में बैठकर तुम्हें देखेंगी और तुम्हारी सुंदरता देखकर उनकी आँखों को सुख मिलेगा। विलोचनं दक्षिणमंजनेन संभाव्य तद्वंचितवामनेत्रा। 7/8 दाईं आँख में तो आँजन लगा चुकी थी, पर बाईं आँख में आँजन लगाए बिना। विलोलनेत्रभ्रमरैर्गवाक्षाः सहस्रपत्राभरणा इवासन्। 7/11 मानो झरोखों में बहुत से कमल सजे हुए हों और उन पर बहुत से भौरे बैठे हुए हों क्योंकि उनके सुन्दर मुखों पर आँखें ऐसी जान पड़ती थीं, जैसे कमल पर भौरे बैठे हों। चकार सा मत्तचकोरनेत्रा लज्जावती लाजविसर्गमग्नौ।7/25 मत्त चकोर के समान आँखों वाली, लजीली इन्दुमती ने धान की खीलें छोड़ी। त्रासातिमात्र चटुलैः स्मरयत्सु नेत्रैः प्रौढप्रिया नयन विभ्रम चेष्टितानि।
9/58 उन हरिणों की डरी हुई आँखों को देखा तो उन्हें अपनी युवती प्रियतमा के चंचल नेत्रों का स्मरण हो आया। तेनाभिघातरभसस्य विकृष्य पत्री वन्यस्य नेत्रविवरे महिषस्य मुक्तः।
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