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कालिदास पर्याय कोश गेरुए वस्त्र पहने और अपनी आँखें नीची किए। जनास्तदालोकपथात्प्रति संहृत चक्षुषः। 15/7
उन्हें देखते ही सब लोगों ने उसी प्रकार अपनी आँखें नीची कर ली। 3. दृष्टि :- (स्त्री०) [दृश्+क्तिन्] आँख, देखने की शक्ति, नज़र।
मृगद्वन्द्वेषु पश्यन्तौ स्यन्दनाबद्धदृष्टिषु। 1/40 हरिणों के जोड़े मार्ग से कुछ हटकर रथ की ओर एक टक देख रहे हैं। सूर्ये तपत्यावरणाय दृष्टेः कल्पेत लोकस्य कथं तमिस्त्रा। 5/13
जैसे सूर्य के रहते हुए संसार में अंधेरा कैसे ठहर सकता है। 4. नयन :-[नी ल्युट्] आँख।
अथ नयनंसमुत्थं ज्योतिरत्रेरिव द्यौः। 2/75 जैसे अत्रि ऋषि के नेत्र से निकली हुई चंद्रमा रूपी ज्योति को आकाश ने धारण किया। निद्रा चिरेण नयना भिमुखी बभूव। 5/64 रघु की आँखों में रात को बहुत बिलंब से नींद आई। ददृशुर ध्वनि तं वनदेवताः सुनयनं नयनंदित कोशलम्। 9/52 उन सुन्दर नेत्र वाले और कौशल की प्रजा को सदा सुख पहुँचाने वाले राजा दशरथ को देखने वनदेवता भी पहुंच गए। त्रासाति मात्र चटुलैः स्मरयत्सु नेत्रैः प्रौढप्रिया नयनविभ्रमचेष्टितानि।9/58 उन हरिणों की डरी हुई आँखों को देखकर उन्हें अपनी युवती प्रियतमा के चंचल नेत्रों का स्मरण हो आया। यः प्रभृज्य नयनानि सैनिकैर्लक्षणी य पुरुषाकृतिश्चिरात्। 11/63 जब उन्होंने आँखें मलकर देखा, तब वह प्रकाश का पुंज एक पुरुष के रूप में दिखाई देने लगा। प्रागेव मुक्ता नयना भिरामाः प्राप्येन्द्रनीलं किमुतोन्मयूखम्। 16/69 मोती तो यों ही सुन्दर होता है और फिर यदि वह इन्द्र नीलमणि के साथ गूंथ
दिया जाय, तब तो कहना ही क्या। 5. नेत्र :-[नयति नीये वा अनेन-वी+ष्ट्रन्] आँख।
नेत्रैः पपुस्तृप्तिमनाप्नुवद्भिर्नवोदयं नाथमिवौषधीनाम्। 2/73
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