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रघुवंश
जनताप्रेक्ष्य सादृश्यं नाक्षिकम्पं व्यतिष्ठत । 15/67
लोगों ने एकटक होकर राम और उन दोनों बालकों का एकदम मिलता जुलता वह रूप देखा ।
वर्णोदकैः काञ्चनशृंग मुक्तैस्तमायताक्ष्यः प्रणयादसिंचन् । 16/70 वे स्त्रियाँ सोने के पिचकारियों से रंग छोड़-छोड़ कर उन्हें भिगोने लगीं। 2. चक्षु :- [ चक्ष् + उसि ] आँख ।
अर्हणामर्हते चक्रुर्मुनयो नयचक्षुषे । 1/55
जब यह समाचार आश्रमवासियों को मिला तो सभ्य, संयमी मुनियों ने अपने रक्षक आदरणीय तथा नीति के अनुसार चलने वाले राजा । निवातपद्यस्तिमितेन चक्षुषा नृपस्य कान्तं पिबतः सुताननम् । 3/17
तत्काल भीतर गए और जैसे वायु के रूक जाने पर कमल निश्चल हो जाता है, वैसे ही वे एकटक होकर अपने पुत्र का मुँह देखने लगे। त्रिलोकनाथेन सदा मखद्विषस्त्वया नियम्या ननु दिव्यचक्षुषा । 3/45 आपको तो यह चाहिए कि संसार में जो कोई भी यज्ञ में विघ्न डाले, उसे आप स्वयं दंड दें, क्योंकि आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं।
चक्षुष्मतातु शास्त्रेण सूक्ष्मकार्यार्थ दर्शिना । 4/13
उन्हें अधिक भरोसा अपने उस शास्त्र - चक्षु पर था, जिससे वे सूक्ष्म से सूक्ष्म बात को भी अधिक समझ जाते थे ।
तदा चक्षुष्मतां प्रीतिरा सीत्समरसा द्वयोः । 4/18
दोनों को देखकर दर्शकों को एक सा आनंद मिलता था ।
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प्रस्पन्दमान परुषेतरतारमन्तश्चक्षुस्तव प्रचलित भ्रमरं च पद्मम् । 5/68 इस समय तुम्हारी बंद आँखों में पुतलियाँ घूम रही हैं और तालों में कमलों के भीतर भरे गूँज रहे हैं।
अथांगराजादवतार्य चक्षुर्याहीति जन्यामवदत्कुमारी । 6 / 30
इन्दुमती ने उस अंग देश के राजा पर से आँखें हटाईं और सुनंदा से कहा आगे चलो ।
तथाहि शेषेन्द्रियवृत्ति रासां सर्वात्मना चक्षुरिव प्रविष्टा । 7/12 मानो उनकी सब इन्द्रियों की शक्ति उनकी आँखों में आ बसी हो । काषायपरिवीतेन स्वपदार्पित चक्षुषा । 15/77
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