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कालिदास पर्याय कोश उनकी सरल चितवन को राजा दिलीप और रानी सुदक्षिणा ने एक दूसरे के नेत्रों के समान समझा। विलोकयन्त्यो वपुरापुरक्ष्णां प्रकामविस्तार फलं हरिण्यः। 2/11 हरिणियाँ राजा दिलीप के सुंदर शरीर को देखती रह गईं, मानो नेत्रों के बड़े होने का उन्हें सच्चा फल प्राप्त हो गया है। धेन्वा तदध्यासितकातराक्ष्या निरीक्ष्यमाणः सुतरां दयालुः। 2/52 गाय कातर नेत्रों से रक्षा की भीख माँग रही है, दयालु राजा दिलीप का जी भर आया और बोले। दीर्घष्वमी नियमिताः परमण्डपेषु निद्रां विहाय वनजाक्ष वनायुदेश्याः।
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हे कमल के समान नेत्र वाले। बड़े-बड़े पट मंडपों से बँधे हुए तुम्हारे वनायु देश के घोड़े नींद छोड़कर। अथ विधिमवसाय्य शास्त्रदृष्टिं दिवसमुखो चितमं चिताक्षिपक्ष्मा। 5/76 सुन्दर पलकों वाले अज ने उठकर शास्त्र से बताई हुई प्रातः काल की सब उचित क्रियाएँ की। इतश्चकोराक्षि विलोकयेति पूर्वानुशिष्यं निजगाद भोज्याम्। 6/59 तब सुनंदा राजा के पास ले जाकर बोली-अरी चकोर जैसे नेत्र वाली! इधर तो देख। मदिराक्षि मदाननार्पितं मधु पीत्वा रसबत्कथं नु मे। 8/68 हे मद भरे नयनों वाली। तुमने मेरे मुँह से छूटे हुए स्वादिष्ट आसव को पीया है। प्रबुद्ध पुंडरीकाक्षं बालातपनि भांशुकम्। 10/9 खिले हुए कमल जैसी आँखो वाले, प्रातः काल की धूप के समान सुनहले वस्त्र पहने। जुगृह तस्याः पथि लक्ष्मणो यत्सव्येतरेण स्फुरता तदक्ष्णा। 14/49 लक्ष्मण ने सीताजी से मार्ग में कुछ नही बताया, पर सीताजी के दाहिने नेत्र ने फड़ककर। अथ धूमाभ्रिताम्राक्षं वृक्ष शाखावलम्बिनम्। 15/49 उन्होंने देखा कि एक पेड़ की शाखा पर उलटा लटका एक मनुष्य तप कर रहा . है, उसकी आँखें धुआँ लगने से लाल हो गई हैं।
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