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रघुवंश
मृग्यश्च दर्भाकुर निर्व्यपेक्षास्तवा गतिज्ञं समबोधयन्माम्। 13/25
हरिणियों ने भी जब देखा कि मुझे तुम्हारे जाने के मार्ग का पता नहीं है। 4. निस्पृह :-[निस्+क्विप्+स्पृह] कामना शून्य, उदासीन।
विषयेषु विनाशधर्मसु त्रिदिवस्थेष्वपि निःस्पृहोऽभवत्। 8/10 स्वर्ग के उन सुखों की चाह भी उन्होंने छोड़ दी, जो कभी न कभी नाश हो ही जाते हैं। सौधवासुमुटजेन विस्मृतः संचिकाय फलनिःस्पृहस्तपः। 19/2 कुटिया के आगे बड़े-बड़े महलों को भूल गए और फल की इच्छा छोड़कर तप
करने लगे। 5. वीतस्पृह :-[वि+इ+क्त+स्पृह] शान्त, उदासीन, इच्छारहित, निरपेक्ष।
नृपतेः प्रीतिदानेषु वीतस्पृहतया यथा। 15/68 जितना इस बात पर हुआ राजा ने उन्हें प्रेम से जो दान दिया, वह भी उन्होंने लौटा दिया।
नूपुर 1. किंकिण :-[किंचित् कणति कण+इन्+ङीप्] धुंघरूदार आभूषण।
अमूर्विमानान्तरलम्बिनीनां श्रुत्वा स्वनं कांचन किंकिणीनाम्। 13/33
विमान के नीचे लटकती हुई सोने की किंकिणियों का शब्द सुनकर। 2. नूपुर :-[नू+क्विप्= नु+पुर्+क] पाजेब, पैरों का आभूषण।
सैषा स्थली यत्र विचिन्वता त्वां भ्रष्टं मया नूपुरमेकमुळम्। 13/23 यह वही स्थान है, जहाँ तुम्हें ढूँढ़ते हुए मैंने पृथ्वी पर पड़ा हुआ तुम्हारा बिछुआ देखा था। सनूपुरक्षोभपदाभिरासीदुद्विग्नहंसा सरिदंगनाभिः। 16/56 जब कुश की रानियाँ सीढियों से पानी में उतरने लगी, उस समय पैर के बिछुए बजने लगे और इन शब्दों को सुन-सुनकर सरयू के हंस मचल उठे।
नेत्र
1. अक्षि :-[अश्नुते विषयान्-अस्+क्सि] आँख।
परस्पराक्षिसादृश्य मयूरोज्झितवर्त्मसु। 1/40
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