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रघुवंश
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2.
पल्लव, कोमल अंकुर। किसलयप्रसवोऽपि विलासितना मदयिता दयिताश्रवणार्पितः। 9/28 कामियों को मतवाला बनाने वाले जो कोमल पत्तों के गुच्छे स्त्रियों ने अपने कानों पर रख लिये थे। उन्हें देखकर भी मन हाथ से निकल जाता था। नवपल्लव-[नु+अप+पल्लव] पल्ल्व, कोमल अंकुर। नवपल्लवसंस्तरेऽपि ते मृदु दूयते यदंगमर्पितम्। 8/57 कोमल पल्लवों का बिछौना भी जिसके शरीर में चुभता था। कुसुमजन्म ततो नवपल्लवास्तदनु षट्पद कोकिल कूजितम्। 9/26 पहले फूल खिले, फिर नई कोंपलें फूटी, फिर भौरे गूंजने लगे और तब कोयल की कूक भी सुनाई पड़ने लगी।
नाथ
1. नाथ-[नाथ्+अच्] प्रभु, स्वामी, रक्षक, पति।
त्रिलोकनाथेन सदो मखद्विषस्त्वया नियम्या ननु दिव्य चक्षुषा। 3/45 संसार में जो कोई भी यज्ञ में विघ्न डाले उसे आप स्वयं दण्ड दें, क्योंकि आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं। सर्वत्र नो वार्तमवेहि राजन्नाथे कुतस्त्वय्यशुभं प्रजानाम्। 5/13 हे राजन्! आपके राज्य में हमें सब प्रकार का सुख है। आपके राजा रहने पर प्रजा में दुःख का नाम भी नहीं है। अथोरगाख्यस्य पुरस्य नाथं दौवारिकी देवसरूपमेत्य। 6/59 उसे देवता के समान मनोहर नागपुर के राजा के पास ले जाकर बोली। ते प्रजानां प्रजानाथास्तेजसा प्रश्रयेण च। 10/83
उन प्रजा के स्वामी राजकुमारों ने अपने तेज और नम्र व्यवहार से। 2. पति-[पाति रक्षति-पा+इति] स्वामी, प्रभु, मालिक, भर्ता ।
असौ महेन्द्राद्रिसमानसारः पतिर्महेन्द्रस्य महादधेश्च। 6/54 ये महेन्द्र पर्वत के समान शक्तिशाली हैं और महेन्द्र पर्वत और समुद्र दोनों पर इनका अधिकार है। अस्मिन्द्वये रूपविधान यत्नः पत्युः प्रजानां वितथोऽभविष्यत्। 7/14 इन दोनों को सुन्दर बनाने का ब्रह्मा जी का सब परिश्रम व्यर्थ ही जाता।
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