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कालिदास पर्याय कोश
आपीन भारोद्वहन प्रयत्नाद्गृष्टिगुरुत्वाद्वपुषो नरेन्द्रः। 2/18 नंदिनी अपने थन के भारी होने से धीरे-धीरे चलती थी और राजा दिलीप भारी
शरीर होने के कारण धीरे-धीरे चल रहे थे। 2. गौ :-[गच्छत्यनेन, गम करणे डो तारा०] मवेशी, गाय।
वन्यवृत्तिरिमां शश्वदात्मानुगमनेन गाम्। 1/88 यदि तुम भी सब भोगों को छोड़कर कन्द-मूल-फल खाते हुए, सदा इस गौ की सेवा करोगे तो। पयोधरी भूतचतुः समुद्रां जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम्। 2/3 मानो साक्षात् पृथ्वी ने ही गौ का रूप धारण कर लिया हो और जिसके चारों थन की पृथ्वी के चार समुद्र हों। स पाटलायां गवि तस्थिवासं धनुर्धरः केसरिणं ददर्श। 2/9 धनुषधारी राजा दिलीप ने देखा कि उस लाल गौ पर बैठा हुआ सिंह ऐसा लग रहा है। भूतानुकम्पा तव चेदियं गौरेका भवेत्स्वस्तिमती त्वदन्ते। 2/48 यदि तुम केवल प्राणियों पर दया करने के विचार से ही ऐसा कर रहे हो, तो भी यह त्याग ठीक नहीं है, क्योंकि इस समय यदि तम मेरे भोजन बनते हो, तो
केवल एक गौ की रक्षा होगी। 3. धेनु :-[धयति सुतान्, धीयते वत्सैर्वा-धे+नु इच्च तारा०] गाय, दुधारु गाय।
वनाय पीतप्रतिबद्धवत्सां यशोधनो धेनुमृषेर्मुमोच। 2/1 जब नंदिनी के बछड़े ने दूध पी लिया, तब यशस्वी राजा दिलीप ने उसे बाँध दिया और ऋषि की गौ को जंगल में चराने के लिए खोल दिया। व्रताय तेनानुचरेण धेनोय॑षेधि शेषोऽप्यनुयायिवर्गः। 2/4 राजा दिलीप ने केवल रानी को ही नहीं; वरन् सब नौकर-चाकरों को भी लौटा दिया; क्योंकि उन्होंने तो गौ सेवा का व्रत ही ले लिया था। रक्षापदेशान्मुनिहोमधेनोर्वन्यान्विनेष्यनिव दुष्टसत्त्वान्। 2/8 मानो नंदिनी गौ की सेवा के बहाने वे जंगल के दुष्ट जनों को शान्त करने की सीख दे रहे थे। वशिष्ठ धेनोरनुयायिनं तमावर्तमानं वनिता वनन्तात्। 2/19 जब सांझ को राजा मुनि वशिष्ठजी की गाय के पीछे-पीछे वन से लौटे तब रानी सुदक्षिणा।
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