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रघुवंश
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तदन्तरे सा विरराज धेनुर्दिनक्षपामध्यगतेव संध्या। 2/20 इन दोनों के बीच में वह लाल रंग की गाय ऐसी शोभा दे रही थी, जैसे दिन और रात की बीच में साँझ की ललाई। अन्येधुरात्मानु चरस्य भावं जिज्ञासमाना मुनिहोम धेनुः। 2/26 तब मुनि वशिष्टजी की गाय नंदिनी ने सोचा कि मैं अपने सेवक राजा दिलीप की परीक्षा क्यों न लूँ, कि वे सच्चे भाव से सेवा कर रहे हैं या केवल स्वार्थभाव से। तमार्यगृह्यं निगृहीत धेनुर्मनुष्य वाचा मनुवंशकेतुम। 2/33 सज्जनों के मित्र, मनुवंश के शिरोमणि राजा दिलीप नंदिनी को ले जाने वाले सिंह की मनुष्य की बोली सुनकर। दिनावसानोत्सुक बालवत्सा विसृज्यतां धेनुरियं महर्षेः। 2/45 इस महर्षि वशिष्ठजी की गौ को छोड़ दो, क्योंकि इसका छोटा सा बछड़ा साँझ हो जाने से इसकी बाट जोह रहा होगा। अथैक धेनोरपराधचंडाद्गुरोः कृशानु प्रतिमाद्धिभेषि। 2/49 यदि तुम गौ के स्वामी और अग्नि के समान अपने तेजस्वी गुरुजी से डरते हो तो। धेन्वा तदध्यासितकातराक्ष्या निरीक्ष्यमाणः सुतरां दयालुः। 2/52 राजा ने देखा कि सिंह के नीचे दबी हुई गाय कातर नेत्रों से रक्षा की भीख माँग रही है। तं विस्मितं धेनुरुवाच साधो मायां मयोद्भाव्य परीक्षितोऽसि। 2/62 राजा दिलीप को अचररज में देखकर गाय बोलने लगी-मैंने माया रचकर तुम्हारी परीक्षा ली थी। इत्थं क्षितीशेन वशिष्ठधेनुर्विज्ञापिता प्रीततरा बभूव। 2/67 राजा की यह बात सुनकर तो वशिष्ठजी की गाय नंदिनी बहुत ही प्रसन्न हुई। धेनुं सवत्सां च नृपः प्रतस्थे सन्मंगलोदग्रतरप्रभवः। 2/71 विदा लेते समय राजा ने बछड़ें के साथ बैठी हुई नंदिनी की परिक्रमा की। महर्षि के आशीर्वाद पाने से उनका तेज और भी अधिक बढ़ गया था। धेनुवत्सहरणाच्च हैहयस्त्वं च कीर्तिमपहर्तुमुद्यतः। 11/74 पहला सहस्रबाहु था जो मेरे पिता से का कामधेनु का बछड़ा छीनकर ले गया था और दूसरे तुम हो, जो मेरी कीर्ति छीनने पर कमर कसे बैठे हो।
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