________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
131
तस्याभवत्क्षण शुचः परितोषलाभः कक्षाग्निलंधिततरोरिव वृष्टिपातः।
11/92 इस थोड़ी देर के दुःख के पश्चात उन्हें ऐसा संतोष मिला, जैसे जंगल की आग
से झुलसे हुए पेड़ को वर्षा का जल मिल जाय। 3. दुम :- वृक्ष।
विसृष्ट पाश्र्वानुचरस्य तस्य पार्श्वदुमाः पाशभृता समस्य। 2/9 मानो मार्ग के वृक्ष यह समझकर वरुण के समान तेजस्वी राजा दिलीप की जय-जयकार कर रहे हों, कि उनकी जय करने वाला कोई भी सेवक उनके साथ नहीं है। अधित्यकायामिव धातुमय्यां लो दुमं सानुमतः प्रफुल्लम्। 2/29 जैसे गेरू के पहाड़ की ढाल पर बहुत से पीले फूलोंवाला लोध का पेड़ फूल रहा
हो।
तद्गजालानतां प्राप्तैः सह काला गुरुदुमैः। 4/81 वहाँ हाथियों के बाँधने से जैसे कालागरु के पेड काँपते थे। दुमसानुमतां किमन्तरं यदि वायौ द्वितयेऽपि ते चलाः। 8/90 यदि पर्वत भी वृक्ष की भाँति आँधी से हिल उठेगा, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा। इति यथाक्रममाविर भून्मधुर्दुभवतीमवतीर्य वनस्थलीम्। 9/26 इस क्रम से धीरे-धीरे वनस्थली में वसन्त रूपी वृक्ष प्रकट होने लगा। अंशैरनुययुर्विष्णुं पुष्पैर्वायुमिव दुमाः। 10/49 जैसे वायु के चलने पर वन के वृक्ष स्वयं उसके पीछे न जाकर अपने फूल उसके साथ भेज देते हैं, वैसे ही देवताओं ने भी अपने-अपने अंश विष्णु के साथ भेज दिए। यः ससोम इव धर्मंदीधितिः सद्विजिह्व इव चंदनदुमः। 11/64 इस वेश में वे ऐसे जान पड़ते थे जैसे सूर्य के साथ चन्द्रमा हो या चंदन के पेड़ से साँप लिपटे हों। खातमूलमनिलो नदीरयैः पातयत्यपि मृदुस्तददुमम्। 11/7 जिस वृक्ष की जड़ें नदी की प्रचंड धारा ने पहले ही खोखली कर दी हों, उसे वायु के तनिक से झोंके में ढह जाने में क्या देर लगती है।
For Private And Personal Use Only