________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
129 शरीरमात्रेण नरेन्द्र तिष्ठन्नाभासि तीर्थप्रतिपादितर्द्धिः। 5/15 हे राजन्! केवल यह शरीर भर आपके पास बचा है और शेष अपना सब धन अच्छे लोगों को दे डाला है। इन्दीवरश्यामतनुनपोऽसौ त्वं रोचनागौर शरीर यष्टिः। 6/65 ये नील कमल के समान साँवले हैं और तुम गोरोचन जैसे गोरे सुंदर शरीर वाली हो। न चकार शरीरमग्निसात्सह देव्या न तु जीविताशया। 8/72 उन्हें जीने की साध नहीं रही किन्तु वे इन्दुमती के साथ इसलिए चिता पर शरीर को नहीं जलाया कि। स्वशरीर शरीरिणावपि श्रुतसंयोगविपर्ययौ यदा। 8/89 जब शरीर और आत्मा भी आपस में बिछुड़ने वाले माने गए हैं। शरीर त्यागमात्रेण शुद्धिलाभममन्यत। 12/10 उन्होंने समझ लिया कि अब प्राण देकर ही मेरी शुद्धि होगी। न केवलं गच्छति तस्य काले ययुः शरीरावयवा विवृद्धिम्। 18/49 कुछ ही दिनों में केवल उनके शरीर के अंग ही नहीं बढ़े।
दोहद
1. दोहद :-[दोहमाकर्ष ददाति-दा+क] गर्भवती स्त्री की प्रबल रुचि, गर्भावस्था।
उपेत्य सा दोहद दुःखशीलतां यदेव वब्रे तदपश्यदाहृतम्। 3/6 गर्भिणी रानी सुदक्षिणा का जब जिस वस्तु पर मन चलता था, वह उसी समय उन्हें मिल भी जाती थी। क्रमेणु निस्तीर्य च दोहदव्यथां प्रचीयमानावयवा रराज सा। 3/7 धीरे-धीरे गर्भ के प्रारंभिक कष्ट बीत गए, तब रानी वैसे ही हृष्ट-पुष्ट और सुंदर लगने लगीं। प्रजावतीदोहद शंसिनी ते तपोवनेषु स्पृहयालुरेव। 14/45 तुम्हारी गर्भिणी भाभी तपोवन देखना चाहती ही हैं, इसलिए तुम उन्हें इसी बहाने
से।
2. दौहृद :-[दुहृद्+अण्] गर्भावस्था।
निदान मिक्ष्वाकुकुलस्य संततेः सुदक्षिणा दौ«दलक्षणं दधौ। 3/1
For Private And Personal Use Only