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कालिदास पर्याय कोश
धनु तामग्रत एव रक्षिणां जहार शक्रः किल गूढ़ विग्रहः। 3/39 इन्द्र को यह बात खटकी और उन्होंने अपने को छिपाकर धनुषधारी रक्षकों के देखते-देखते उस घोड़े को चुरा लिया। तनुलताविनिवेशितविग्रहा भ्रमरसंक्रमितेक्षणवृत्तयः। 9/52 कोमल लताओं का रूप धारण करके भौरों की आँखों से वन देवता भी। विग्रहेण मदनस्य चारुणा सोऽभवत्प्रतिनिधिर्नकर्मणा। 11/13 मानो वे वहाँ कामदेव की सुन्दरता के प्रतिनिधि बनकर आए हों, उसके कार्यों
के नहीं। 10. शरीर :-[शृ+ईरन्] काया, देह ।
न चान्यतस्तस्य शरीररक्षा स्ववीर्यगुप्ता हि मनो: प्रसूतिः। 2/14 रही अपने शरीर की रक्षा की बात, उसके लिए उन्होंने किसी सेवक की आवश्यकता नहीं समझी, क्योंकि जिस राजा ने मनु के वंश में जन्म लिया हो, वह अपनी रक्षा तो स्वयं ही कर सकता है। स त्वं मदीयेन शरीरवृत्तिं देहेन निर्वर्तयितुं प्रसीद। 2/45 इसलिए तुम मेरे शरीर को खाकर अपनी भूख मिटा लो। किमप्यहिंसस्यस्त्व चेन्मतोऽहं यशः शरीरे भव मे दयालुः। 2/57 यदि तुम किसी कारण से मेरे ऊपर दया करना चाहते हो, तो मेरे यश रूपी शरीर की रक्षा करो। शरीरसादादसमग्रभूषणा मुखेन सालक्ष्यतः लोध्रपाण्डुना। 3/2 उन्होंने अपने शरीर से बहुत से गहने उतार डाले, उनका मुँह लोध के फूल के समान पीला पड़ गया। पितुः प्रयत्नात्स समग्रसंपदः शुभैः शरीरावयवैर्दिने दिने। 3/22 वैसे ही बालक रघु के शरीर के अंग भी संपत्तिशाली पिता की देखरेख में दिन-दिन बढ़ने लगे। तमंकमारोप्य शरीरयोगजैः सुखैर्निषिंचंतमिवामृतं त्वचि। 3/26 जब राजा उसे गोद में उठाते, तब उसके शरीर को छूने से ही उन्हें ऐसा जान पड़ता था, मानों उनके शरीर पर अमृत की फुहारें बरस रही हों। कालोपपन्नातिथिकल्प्य भागं वन्यं शरीरस्थित साधनं वः। 5/9 जिन से आप लोग अतिथि का स्वागत सत्कार करो हैं और जिन्हें खाकर ही आप लोग अपने शरीर को साधते हैं।
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